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Sunday, June 24, 2012

स्वार्थी युग हो गया है


चित्र गूगल बाबा से सप्रेम प्राप्त 

स्वार्थी युग हो गया है
मर रही संवेदना 
अब हलाकू घूमते हैं 
मौत की टोली बना 

हर तरफ संत्रास का 
फैला हुआ है कोहरा 
फूल लगते कागजी सब 
सब्जियों पर रंग हरा 
सच अनावृत्त हो रहा है 
झूठ की गोली बना 

झुग्गियों में फैलती 
आँचल पसारे क्रंदना
मायावी दुनिया हुई 
सब लुप्त होती भावना 
सत्य भी मिलता बिचारा 
फूस की खोली बना 
   
अस्पतालों में चिकित्सक 
कर रहे व्यापार हैं
कैश-लेश की ओट में 
करते विविध व्यभिचार हैं
पीड़ितों से लूटते ये 
द्रव्य को झोली बना 

राजपथ अब हो गये हैं 
मौत की सूनी डगर 
जनपथों पर घूमती है 
काल की पैनी नज़र 
दौड़ चूहों की निकलती 
खून की होली मना ।


रचनाकार- डॉ. जय शंकर शुक्ला 


संपर्क- बैंक कालोनी, दिल्ली
दूरभाष- 09968235647 

5 comments:

  1. कटु सत्य कहती रचना ...
    बहुत सुंदर लिखा है ...शुभकामनायें...

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    1. अनुपमा त्रिपाठी जी टिप्पणी के लिए आभार...

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  2. डॉक्टर जय शंकर प्रसाद जी को अनेक बधाईयाँ। उनकी यह रचना आज समाज में फ़ैली बुराईयों की तरफ़ इशारा करती है। इस रचना के द्वारा उन्होने अपनी रचनाधर्मिता का बखूबी पालन किया है।
    धन्यवाद सुमित एक श्रेष्ठ रचना पढ़वाने के लिये।

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    1. आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद सुनीता शानू जी...

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