चित्र गूगल बाबा से सप्रेम प्राप्त |
स्वार्थी युग हो गया है
मर रही संवेदना
अब हलाकू घूमते हैं
मौत की टोली बना
हर तरफ संत्रास का
फैला हुआ है कोहरा
फूल लगते कागजी सब
सब्जियों पर रंग हरा
सच अनावृत्त हो रहा है
झूठ की गोली बना
झुग्गियों में फैलती
आँचल पसारे क्रंदना
मायावी दुनिया हुई
सब लुप्त होती भावना
सत्य भी मिलता बिचारा
फूस की खोली बना
अस्पतालों में चिकित्सक
कर रहे व्यापार हैं
कैश-लेश की ओट में
करते विविध व्यभिचार हैं
पीड़ितों से लूटते ये
द्रव्य को झोली बना
राजपथ अब हो गये हैं
मौत की सूनी डगर
जनपथों पर घूमती है
काल की पैनी नज़र
दौड़ चूहों की निकलती
खून की होली मना ।
रचनाकार- डॉ. जय शंकर शुक्ला
संपर्क- बैंक कालोनी, दिल्ली।
दूरभाष- 09968235647
कटु सत्य कहती रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ...शुभकामनायें...
अनुपमा त्रिपाठी जी टिप्पणी के लिए आभार...
Deleteडॉक्टर जय शंकर प्रसाद जी को अनेक बधाईयाँ। उनकी यह रचना आज समाज में फ़ैली बुराईयों की तरफ़ इशारा करती है। इस रचना के द्वारा उन्होने अपनी रचनाधर्मिता का बखूबी पालन किया है।
ReplyDeleteधन्यवाद सुमित एक श्रेष्ठ रचना पढ़वाने के लिये।
आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद सुनीता शानू जी...
Deleteसुन्दर गीत.
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