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Friday, May 4, 2012

चिमनी पर टंगा चाँद




मेरे गाँव के हो तुम

यार- चाँद !

धुएँ वाली ऊंची चिमनी पर

टंगा देखा तुम्हें

बहुत दिनों बाद


पहचाने नहीं गए तुम

पी गया लगता है - सारा दूधियापन

यह शहर


तुम हो गये… इतने पीले

सूख कर कांटा मैं भी हुआ

ढोते-ढोते वादे सपनीले


याद करो दोस्त

जब हम गाँव से आये थे

बेशक - छूट गए थे खेत

सारस, बया के घोंसले, शिवाले और धुँआते छप्पर

लेकिन -

गोबर सने हाथों राह निहारती आँखें

और मिलकर साथ खेला

चहकता हुआ आकाश

हम साथ लाये थे


बेशक - अक्स चटक कर

इस शहर में

छितरा गए थे मेरी और तुम्हारी तरह!


हमने फिर भी भागती भीड़ में

थोड़े से सपने जिन्दा जरूर बचाए थे


एक दिन मिलो चाँद

इस तरह - किसी थके हुए चौराहे पर

वही अपनी-सी दूधिया हँसी लेकर

मैं भी मिलूँगा तुम्हें

अपने गाँव की तरह

बाँहों में भर कर ।

लेखक- श्री सुरेश यादव
संपर्क- 09717750218

2 comments:

  1. ये कविता पढ़के मजा आ गया

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  2. मेरे गाँव के हो तुम
    भाई सुमित जी
    कविता पढ़ कर आनद की गहन अनुभूति हुई.

    ReplyDelete

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