पूछा था रात मैंने ये पागल चकोर से
पैगाम कोई आया है चंदा की ओर से
बरसों हुए मिला था अचानक कभी कहीं
अब तक बंधा हुआ है जो यादों की डोर से
मुझको तो सिर्फ उसकी ख़ामोशी का था पता
हैरां हूँ पास आ के समंदर के शोर से
मैं चौंकता हूँ जब भी नज़र आए है कोई
इस दौर में भी हँसते हुए ज़ोर ज़ोर से
ये क्या हुआ है उम्र के अंतिम पड़ाव पर
माज़ी को देखता हूँ मैं बचपन के छोर से
लेखक- श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
***चित्र गूगल से साभार***
ये क्या हुआ है उम्र के अंतिम पड़ाव पर
ReplyDeleteमाज़ी को देखता हूँ मैं बचपन के छोर से
बेहद खूबसूरत पंक्तियां हैं। लाजवाब ग़ज़ल!
अच्छी गजल है
ReplyDeleteप्रभाव शाली ...
ReplyDeleteबाजपेयी जी को पढवाने के लिए आपका आभार संगीता जी!
सादर ब्लागस्ते में श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी की रचना का प्रकाशन करना एक सराहनीय कार्य है। सादर ब्लागस्ते की गरिमा बढ़ी।
ReplyDeleteumda gazal, aaj yahan pehli baar aai hun, achha laga, badhai Tomar ji.
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