सुंदर-स्वच्छ हो तन
सोने जैसा खरा हो मन
शुद्ध हमारा आहार
हो
अनुकरणीय अपना व्यवहार हो
वाणी हो अपनी रसदार
हो सादगी जीवन का आधार
बातों में हो भरी मधुरता
चरित्र में हो सजी पवित्रता
विचारों में हो शुद्धता
वचनों में हो परिपक्वता
मन में हो भाव समर्पण का
कर्म में हो परिबद्धता
ईर्ष्या राग द्वेष से दूर हो
आनंद प्रेम से परिपूर्ण हो
न किसी के प्रति रहे बैर
चारों तरफ प्रेम ही प्रेम हो.
लेखिका- कुंवरानी मधु अमित सिंह
उत्तम विचार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव....सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर सार्थक रचना.....
ReplyDeleteसुंदर विचार.....
सुंदर विचार
ReplyDeleteतभी बनेगा सुंदर संसार