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Wednesday, August 3, 2016

कविता : औरत


मै मर्यादा का अवतार हूँ 

मै समझौता का दूजा नाम हूँ 

मै मितभाषी का सरोकार हूँ 
मै भाइयों का अभिमान हूँ
मै माँ -बाप की पुचकार हूँ
मै राखी का त्यौहार हूँ
मै गृह लक्ष्मी का सौभाग्य हूँ
मै पति का अधिकार हूँ
मै नंद औ देवर का दुलार हूँ
मै बच्चो की रक्षक हूँ
मै माँ औ सास की संयोजक हूँ
मै रिश्तों का अंजाम हूँ
मै सुंदरता का परिमाप हूँ
मै ,हाँ !एक औरत हूँ ।
पर...
आती नज़रों से तार -तार हूँ
चेहरे से सीने पर आती नज़रों से बेजार हूँ
रात से डरती मै कारागार हूँ
संता -बंता सी बनती परिहास हूँ
छेड़खानियो से लाचार हूँ
बैठकों से दर किनार हूँ
तेजाबो का इस्तेमाल हूँ
राजनीति मॆ बवाल हूँ
गंदे लोगों का खिड़वाल हूँ
धंधे वालों का धन -माल हूँ
इतनी मुश्किलों मॆ माँ -बाप का जंजाल हूँ
मै फ़िर भी कहलाती महान हूँ
मै कहलाती महान हूँ ॥

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सुमित प्रताप सिंह,
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