सुख-दुःख के साथी
मित्र-सखा भी होते हैं
सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं…
सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं…
जब अपने ठुकरा देते हैं
और निराशा छा जाती है
मन विचलित हो उठता फिर
कोई आस नज़र न आती है
तब बनके सहारा मित्र हृदय में
बीज आस के बोते हैं
और निराशा छा जाती है
मन विचलित हो उठता फिर
कोई आस नज़र न आती है
तब बनके सहारा मित्र हृदय में
बीज आस के बोते हैं
सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं...
दुःख में संग वो रोते हैं...
कभी बनके मात-पिता वो
कभी भाई-बहन रूप में
देते काँधा निश्छल मन से
कष्टों की दोपहरी धूप में
हमको सुखमय जीवन देने को
वो नित नए सपन संजोते हैं
कभी भाई-बहन रूप में
देते काँधा निश्छल मन से
कष्टों की दोपहरी धूप में
हमको सुखमय जीवन देने को
वो नित नए सपन संजोते हैं
सुख में हँसते संग हमारे
दुःख में संग वो रोते हैं...
दुःख में संग वो रोते हैं...
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!