"आ रै जिले।“
(भाई जिले।)
"हाँ बोल भाई नफे।"
“आज तै घना छो मैं लागै सै।“
(आज बहुत गुस्से में दिख रहा है।)
“भाई बात ही ऐसी है कि गुस्सा किये बिना रहा भी तो नहीं जाता।”
“इसी के बात होगी।“
(ऐसी क्या बात हो गई?)
“अरे हमारे पुलिस के साथियों ने एनकाउंटर में एक अपराधी को मार डाला।”
“भाई जै जुर्म ख़त्म करणा है तो बदमाश तो मारने ए पड़ेंगे। इसमें छो मैं आण की के बात सै? तने तो अपने साथियों तै शाबासी देणी चाहिए और तू खामखाँ छो मैं आ रया सै।“
(भाई अपराध का खात्मा करना है तो अपराधियों को तो मारना ही पड़ेगा। इसमें गुस्सा करने की क्या बात है? तुझे तो अपने साथियों को शाबासी देनी चाहिए और तू गुस्सा कर रहा है।)
“अरे भाई नफे मैं अपने साथियों से गुस्सा नहीं हूँ। मुझे तो प्रेस्टीट्यूड पर गुस्सा आ रहा है।”
“प्रेस्टीट्यूड! भाई इसका के मतलब है?”
(प्रेस्टीट्यूड! भाई इसका मतलब क्या है)
“प्रेस्टीट्यूड प्रोस्टीट्यूड का संशोधित रूप है।”
“भाई इसका हिंदी में मतलब तो बता।”
(भाई इसका हिंदी में मतलब तो बता।)
“जिस प्रकार से वेश्यावृति करनेवाली महिलाओं को अंग्रेजी में प्रोस्टीट्यूड कहा जाता है उसी प्रकार पत्रकारिता में धनवानों के इशारों पर नाचनेवाले व पत्रकारिता की भावना को अपने स्वार्थ के लिए सरेआम नीलाम करनेवाले पत्रकारों को प्रेस्टीट्यूड की संज्ञा दी गयी है।”
“पर भाई सारे पत्रकार तो बुरे नहीं होंदे।”
(पर भाई सारे पत्रकार तो बुरे नहीं होते।)
“मैंने कब कहा कि सारे पत्रकार बुरे होते हैं। पर जो बुरे हैं उनके लिए तो यह प्रेस्टीट्यूड शब्द बहुत उपयुक्त है। अच्छा प्रेस्टीट्यूड के अलावा पूरे देश जगह-जगह कुकुरमुत्तों की तरह उग आए एन.जी.ओ. भी कुछ कम नहीं हैं। चाहे भले आदमी कितने भी मारे जाएँ पर इनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगता, लेकिन यदि कोई अपराधी मारा जाए तो ये आसमान अपने सिर पर उठा लेते हैं। जैसे कोई अपराधी नहीं बल्कि इनका जीजा या फूफा इस धरती को छोड़कर चला गया हो।”
“पर भाई ये लोग आपणे जीजा और फूफा मतलब कि अपराधी के मरने पर ऐसी हरकत क्यों करते हैं?”
(पर भाई ये लोग अपने जीजा और फूफा मतलब कि अपराधी के मरने पर ऐसी हरकत क्यों करते हैं?)
“अपने पापी पेट की खातिर, जो कि थोड़े-बहुत पैसों से नहीं भर पाता और उसके लिए अच्छा-ख़ासा धन चाहिए। अब अच्छा-ख़ासा धन कोई आसमान से तो टपकेगा नहीं। उसे पाने के लिए कुछ न कुछ तो छल-प्रपंच करने ही पड़ेंगे। इसलिए ये लोग ऐसे प्रपंचों द्वारा धन कमाने की फ़िराक में रहते हैं।”
भाई नू बता कि एनकाउंटर की असलियत के सै?
(भाई ये तो बता कि एनकाउंटर की असलियत क्या है?)
“एनकाउंटर की असलियत ये है कि जो अपराधी दुर्घटनावश एनकाउंटर में मारा गया, उसपर लोगों से ठगी करने के करीब सत्रह मामले दर्ज थे। उसने ठगी करके कई बेचारे इंसानों की खून-पसीने की कमाई डुबोकर अपने पाप के घड़े को भर लिया था।”
“भाई लोग तो नू कवै सैकि बड़ा भला माणस था धार्मिक कामां मै भी दान दक्षिणा बहोत देया करदा, इसा माणस भी लोग तै ठगी करकीं धोखेबाजी कर सकै है यकीन नहीं होंदा।“
(भाई लोग तो ये कह कह रहे हैं कि बड़ा भला आदमी था। धार्मिक कार्यों में दान-दक्षिणा भी बहुत देता था। ऐसा आदमी भी लोगों से ठगी करके धोखेबाजी कर सकता है विश्वास नहीं होता।)
“सही कह रहा है भाई। बहुत भला आदमी था तभी तो लोगों को ठगकर उन्हें कंगाल करके उनकी सारी परेशानियों को हर रहा था। भाई एक बात ध्यान रखना कि जो इंसान जितना बड़ा पापी होता है वो ही सबसे ज्यादा भक्ति और अच्छाई का ड्रामा करता है। अगर वो इतना भला आदमी था तो पिछले साल लाइसेंस रद्द हुई रिवाल्वर के साथ रेस्टोरेंट में क्या भजन कर रहा था?”
“पर लोग तो नू कै रे हैं कि पुलिस ने जाणबूझ की मार दिया।“
(पर लोग तो यूँ कह रहे हैं कि पुलिस ने उसे जानबूझकर मार डाला।)
“भाई लोगों का क्या है वो तो बातों के बताशे फोड़ने के शौक़ीन होते हैं। पुलिस तो उस अपराधी को गिरफ्तार करने गई थी, पर उसने अपनी रिवाल्वर निकाल ली और पुलिस से गुत्थम-गुत्था हो गया। इसी गुत्थम-गुत्था में गोली चल गई और वो अपराधी रुपी महात्मा परमधाम की यात्रा को निकल पड़ा। वो तो पुलिसवालों की किस्मत अच्छी थी जो किसी और के गोली नहीं लगी वर्ना उनका भी राम नाम सत्य हो जाता। इस पूरी घटना की गवाही वहाँ मौजूद एक महिला ने दी है।”
“भाई एक बात सोच रया हूँ कि जा नू ए लोग पुलिस के पाछे पड़े रहे तो मुजरिम का हौसला बढेगा और पुलिस का हौंसला गिरेगा।“
(भाई मैं एक बात सोच रहा हूँ कि अगर यूँ ही लोग पुलिस के पीछे पड़े रहे तो अपराधियों का हौसला बढेगा और पुलिस का हौसला गिरेगा।)
“अपराधियों का हौसला बढेगा नहीं बल्कि दिनोंदिन आसमान चूमती महँगाई की भांति बढ़ चुका है और पुलिस का हौसला चुनाव में धराशाही हुए विपक्षियों के दिल धड़कनों की तरह दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। इस एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों का ट्रांसफर होना इसका एक छोटा सा नमूना है। शायद ऐसा भी समय आए कि अपराधी को मारने की बजाय पुलिस उसे आराम से जाने देगी और अपनी नौकरी सलामत रखने की कोशिश में रहा करेगी क्योंकि उसे ये डर रहेगा कि यदि उसने अपराधी को मार दिया तो पहले तो उसके खिलाफ जुलुस निकाले जायेंगे, फिर उसको निलंबित करके उसके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जायेगी। इसलिए अपने और अपने बीबी-बच्चों के भविष्य के लिए वह अपराधियों से दो-दो हाथ करने के बजाय उन्हें सलाम मारकर हाथ मिलाकर चलने में ही अपनी खैर समझेगी।”
भाई दूसरी बात या सोच रया हूँ कि एनकाउंटर का विरोध करण आल्या न क्यों न एनकाउंटर के टैम आगे रख्या का तालो उए सारे जणे बता सकैं कि एनकाउंटर सही कार्य सै या नी?”
(भाई दूसरी बात ये सोच रहा हूँ कि एनकाउंटर का विरोध करनेवालों को क्यों न एनकाउंटर के वक़्त पुलिस टीम के आगे रखा जाए ताकि ये लोग बता सकें कि एनकाउंटर सही किया जा रहा है या नहीं?)
“भाई एनकाउंटर करने के लिए कलेजा चाहिए होता है। जब गोली कनपटी के बगल से निकलती है तो अच्छे-अच्छों की पतलून गीली हो जाती है और एनकाउंटर के अंधविरोधी महानुभाव दिल के इतने मजबूत हैं कि पटाखा फूटने की आवाज सुनने पर भी इनकी साँस थम जाती है। इसलिए एनकाउंटर विरोधी महानुभावों को साथ ले तो जाएँ पर इनका हगा-मुता कौन बटोरेगा?”
“हा हा हा भाई या बात तो तू ठीक कै रया सै पर नू तो बता कि अगले एनकाउंटर मै के प्लान सै?“
(हा हा हा भाई बात तो शायद तू ठीक कह रहा है, पर ये तो बता कि अगले एनकाउंटर में क्या प्लान है?)
“भाई एक बार को ख्याल आता है कि तेरा आईडिया भी बुरा नहीं है। एनकाउंटर में मीन-मेख निकालने वाले इन भले लोगों को पुलिस टीम के साथ आगे वाली पंक्ति में रखने के बारे में विचार करना ही पड़ेगा। बाकी अपने साथ एक सफाई कर्मचारी भी रखना पड़ेगा ताकि जब ये डर से हगेंगे-मूतेंगे तो उसकी सफाई की जिम्मेवारी वो संभाल ले।”
“मन्नै लाग्य सै कि तेरा आईडिया काम करेगा। मारी ओर तै शुभकामनाएं।“
(मुझे लग रहा है कि आईडिया काम करेगा ऐसा मेरा विश्वास है। मेरी ओर से शुभकामनाएं।)
“धन्यवाद भाई।”
*चित्र गूगल से साभार
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!