आज माँ की दवाई लेने सादिक़ नगर में स्थित आयुर्वेदिक औषधालय गया। औषधालय प्रभारी के कमरे में कुछ देर ही बैठा था कि शरीर पसीने से लथपथ हो गया। जब नज़र छत की ओर गयी तो पंखा बंद था। जब मैंने पंखा बंद होने का कारण पूछा तो प्रभारी डॉ. विनोद यादव ने बताया कि उन्होंने विरोध स्वरुप पंखा बंद कर रखा है।
मैंने विरोध का कारण पूछा तो जो कारण उन्होंने बताए उन्हें उनके शब्दों में ही जानते हैं।
डॉ . विनोद यादव- "मैं इस आयुर्वेदिक औषधालय (Dispensary) का प्रभारी (Incharge) हूँ फिर भी मेरे कमरे के लिए एक कूलर तक उपलब्ध नहीं करवाया गया, जबकि दिल्ली के प्रत्येक एलोपैथिक औषधालय में प्रभारी के कमरे में ए.सी. की सुविधा दी जाती है। इसलिए विरोध स्वरुप मैंने अपने कमरे के इस इकलौते पंखे को भी बंद कर दिया ताकि आप जैसे व्यक्ति इसे देखें तो ये बात अन्य लोगों तक पहुँचे। आयुर्वेदिक पद्धति के साथ सौतेला व्यवहार अक्सर होता रहता है। सी.जी.एच.एस. में निदेशक अथवा उपनिदेशक के पद पर कभी कोई आयुर्वेदिक डॉक्टर नहीं पहुँच पाता है। ये पद तो सिर्फ एलोपैथिक डॉक्टर के लिए ही रिजर्व रहते हैं। आयुर्वेद पद्धति के साथ सौतेला व्यवहार करने के कारण न तो हमें उचित मात्रा में दवाइयाँ उपलब्ध करवाई जाती हैं और न ही उचित सामान मिल पाता है। अब मेरे कमरे में पड़ी हुईं इन कुर्सियों को ही देख लीजिए। इन कुर्सियों से बेहतर तो दफ्तर के चपरासी की कुर्सी होती है। मैं चाहता हूँ कि इस भारतीय चिकित्सा पद्धति के साथ किया जा रहा ये भेदभाव समाप्त हो तभी मेरे कमरे का पंखा चलेगा।"
नोट : मित्रो यदि आपको भी लगता है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के साथ ये व्यवहार अनुचित है तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ शेयर करना मत भूलें।
निवेदक : सुमित प्रताप सिंह
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