जीवन व मृत्यु में संवाद होने लगा
दोनों में कौन श्रेष्ठ ,वाद होने लगा,
बात बढ़ते-बढ़ते विवाद होने लगा
जीवन की हर बात का प्रतिवाद होने लगा |
अंतिम सत्य मृत्यु है, प्रचार होने लगा,
विपरीत वातावरण,जीवन भी निराश होने लगा,
मृत्यु के पक्ष में ही सरोबार होने लगा,
हर आस छोड़कर निढाल हो रोने लगा |
रोते-रोते उसको अचानक ,ये ख्याल आ गया
कर्म ही जीवन है ,इसका भाव छा गया
निराश भावों को उसने ,एक पल में भगा दिया
मृत्यु तो निष्क्रिय है,यह सबको बता दिया |
कर्म केवल जीव करता, जिंदगी की शान है
आत्मा भटकती रहती ,मृत्यु के उपरांत है
जीव उसको आश्रय देता, जीवन की पहचान है
जीवन ही सर्व श्रेष्ठ है,सत्कर्म उसकी पहचान है |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
मुजफ्फर नगर, उ. प्र.
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!