रजत ने जैसे ही फ़िल्म की सी.डी. खरीदने के लिए उठाई तो नितिन को गुस्सा आ गया।
नितिन- "रजत तुझे शर्म-वर्म है कि नहीं?"
रजत- "क्यों दोस्त क्या बात हो गई?"
नितिन- "तू उस फ़िल्म की सी.डी. खरीद रहा है, जिसमें हमारे धर्म का मजाक उड़ाया गया है और हमारे देवी-देवताओं का अपमान किया गया है।"
रजत- "इसीलिए तो इस फ़िल्म की लोकल सी.डी. खरीद रहा हूँ, ताकि अपने धर्म और देवी-देवताओं के अपमान का बदला लिया जा सके"
नितिन- "मैं कुछ समझा नहीं।"
रजत- "इस फ़िल्म में हमारे धर्म और देवी-देवताओं का अनादर किया गया है। यह जानते हुए भी अपने धर्म के कुछ तथाकथित विद्वान लोग इस फ़िल्म को देखने की इच्छा करेंगे। मैं उन तथाकथित विद्वानों को इस फ़िल्म की लोकल सी.डी. को कॉपी करके मुफ़्त में बाटूँगा, जिससे कि वे सभी इस फ़िल्म को सिनेमाघर में जाकर देखने की बजाय अपने घर पर ही देखें। इस प्रकार मेरे और मेरे जैसे अनेक लोगों के इस छोटे से प्रयास से फ़िल्म निर्माता का आर्थिक रूप से नुकसान होगा और वह आइन्दा से किसी भी धर्म या जाति का अपमान करनेवाली फ़िल्में बनाने से बाज आएगा।“
नितिन- "अच्छा ऐसा है क्या?" दुकानदार से "भैया इस फ़िल्म की एक लोकल सी.डी. मुझे भी देना।"
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!