आदरणीय बंधुजनों एवं मित्र जनों
सादर ब्लॉगस्ते!
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आप सभी को दीपों के इस पर्वर दीपावली की अशेष शुभकामनाएँ।आज दीपावली के शुभ अवसर पर आदरणीय माता-पिता के चरणों में बैठकर निम्नलिखित कविता का निर्माण हुआ है। आशा है आप सबको पसंद आएगी।
न न मुझको
अब नहीं रही है
स्वर्ग पाने की
वो बेकार सी चाहत
क्योंकि मैं तो पहले
ही
रहता हूँ स्वर्ग
सरीखी
माता की ममतामयी और
पिता की स्नेहिल
छाया में ।
न न मुझको
अब नहीं भातीं
स्वर्ग की
सुख-सुविधाएँ
न करता हूँ इच्छा
वहाँ के छप्पन भोगों
की
मेरा मन तो रमता है
माँ के हाथ की
दाल और रोटी में ।
न न मुझको
अब नहीं रिझातीं
स्वर्ग की वो सुंदर
परियाँ
मैं तो खो जाता हूँ
सीधी-सादी भोली सी
उस लड़की के भोले चेहरे
में ।
न न मुझको नहीं
सुहाता
देवों संग जा मिलना-जुलना
मेरा तो मन लगता है
अपने मित्र-सखाओं
में
और बंधुओं की टोली में ।
न न मुझको
नहीं छोड़ना इस धरती
को
मुझे तो भगवन
बार-बार भेजना यहीं
भारत की इस देव भूमि
में ।
इसी की खातिर जियूँ
इसी की खातिर मरूँ हमेशा
न न मुझको
नहीं चाहिए सिवा इसी
के
दे दो बस ये छोटा सा
वर
मत ठुकराओ मत ठुकराओ।
© सुमित
प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!