सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Wednesday, May 7, 2014

कविता : दुखी इंसान


एक दुखी इंसान
पहने लुंगी-बनियान
कूड़ा फैंककर आ रहा है
शादी करके पछता रहा है

बीते दिन याद करता है
ठंडी आहें भरता है
हर लड़की पर मरता है
पर अपनी बीबी से डरता है
बीते दिन याद करके
दुखी गीत गा रहा है

सुबह जल्दी उठता है
रात को देर से सोता है
पूरा दिन जीवन उसका
भाग-दौड़ भरा होता है
प्याज काटते-काटते
असली आँसू बहा रहा है

सबको खाना खिलाता है
फिर बच्चों को पढ़ाता है
उनके सो जाने के बाद
बीबी के पैर दबाता है
जिसने शादी करवाई
उसे वह पंडित याद आ रहा है.

सुमित प्रताप सिंह 
इटावा, नई दिल्ली, भारत 


No comments:

Post a Comment

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!