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Sunday, February 9, 2014

लंबा है अभी सफ़र

बहुत लंबा है अभी सफ़र
कुछ देर तलक तो साथ रहो
राह में है मुश्किलें बहुत
कुछ कदम तो साथ रहो

जाने कितने आयेंगे मेहरो-माह
कुछ सहर तो साथ रहो
ढूँढ रहा हूँ ख्वाब नख्ले-खुश्क-सहरा में  
कुछ देर तो निगाहों के साथ रहो

आयेंगीं अजनबी शहर की गलियाँ
सनम बन के मेरे साथ रहो
न निभा सको तमाम उम्र का साथ

कुछ पल तो साथ रहो

रविश 'रवि'

फरीदाबाद

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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