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Monday, February 17, 2014

चाँद…बदली…और बारिश

आज बारिश की बूंदों ने फिर मन को भिगो दिया
 जाने फिर कहाँ से चली पुरवाई
और किसी की याद ने ....
सोये हुए पन्नों को जगा दिया

वो  हवा  का  स्पर्श
वो  मुस्कराहट
वो  हौले  से उनका  करीब  से  गुजर  जाना

यूँ  लगता था  मानों
जी लिया हो ज़िन्दगी को उन चंद पलों में

वो  रुखसार पे गिरी जुल्फों को समेटना
और फिर
हौले से चाँद का दीदार हो जाना

पर न जाने क्यूँ इस चाँद को छूने की हिम्मत  कर सका
और आज भी है चाँद
उतना ही दूर
जितना  था  पहले

आज फिर चाँद बादलों की बदली से निकला
चांदनी  बिखेर कर फिर बादलों में छुप गया
और आज भी...
उसे निहारने के अलावा कुछ न कर सके

चंद क़दमों का फासला...
रह जायेगा यूँ अधुरा
ये  सोचा था
 रविश 'रवि'
फरीदाबाद

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सुमित प्रताप सिंह,
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