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Tuesday, February 12, 2013

शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 6

मेरी  मासूम बेटी ने बिगाड़ा क्या था कमबख्तों ,
उसे क्यूँ इस तरह रौंदा ,ज़रा मुहं खोलो कमबख्तों .

बने फिरते हो तुम इन्सां क्या था ये काम तुम्हारा ,
नोच डाली कली  मेरी, मरो तुम डूब कमबख्तों .

मिटाने को हवस अपनी मेरी बेटी मिली तुमको ,
भिड़ते शेरनी से गर, तड़पते खूब कमबख्तों .

दिखाया मेरी बच्ची ने तुम्हें है दामिनी बनकर ,
 झेलकर ज़ुल्म तुम्हारे, जगाया देश कमबख्तों .
 
किया तुमने जो संग उसके मिले फरजाम अब तुमको ,
देश का बच्चा बच्चा अब, देगा दुत्कार कमबख्तों .
 
कभी एक बेटी थी मेरी करोड़ों बेटियां हैं अब ,
बचाऊंगी सभी को मैं ,सजा दिलवाकर कमबख्तों .
 
मिला ये जन्म आदम का न इसकी कीमत तुम समझे ,
जो करना था तुम्हें ऐसा ,होते कुत्तों तुम कमबख्तों .
 
गुजारो जेल में जीवन कीड़े देह में भर जाएँ ,
तुम्हारा हश्र देखकर, न फिर हो ऐसा कमबख्तों .
 
बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी ,
दुआ देती है ''शालिनी'',पड़ें तुम पर ये कमबख्तों .
 
रचनाकार: सुश्री शालिनी कौशिक


कांधला, शामली 

3 comments:

  1. सुमित प्रताप जी ,
    नमस्कार
    मेरी ग़ज़ल में अंतिम पंक्ति में ये कमी रह गयी है कृपया सुधार दें.

    बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी ,
    दुआ देती है ''शालिनी'',पड़ें तुम पर ये कमबख्तों .

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  2. सुन्दर प्रभाब शाली अभिब्यक्ति .आभार .

    आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
    बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

    सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
    हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

    ReplyDelete
  3. hal hi me hui ghtna ko ati uttam kavita me piroya h. गुजारो जेल में जीवन कीड़े देह में भर जाएँ ,
    तुम्हारा हश्र देखकर, न फिर हो ऐसा कमबख्तो... aisa hi ho..

    ReplyDelete

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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