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Saturday, October 6, 2012

कविता: आस्था के फूल

(चित्र गूगल से साभार)
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं
लोग अपनों से छले जाते हैं जहाँ में
छलने से फिर भी घबराते नहीं हैं
आस्था को आधार बना आगे बढ़ते जाते हैं 
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं

 कुछ लोग बताते हैं "खुदा" खुद को, मगर 
खुदा की मौजूदगी को वो भी झुठलाते नहीं हैं.
तन्हाई में करते हैं वो बंदगी खुदा की
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.

साथ चलने की खाकर कसम जिंदगी में 
रहबर छोड़ जाते हैं अक्सर मझधार में 
इंतजार में रहती आँखें खुली, मरते वक्त 
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.


नये दोस्तों से बढ़ाकर नजदीकियां 
फिर नये रिश्ते हर पल बनाते हैं
छलने वाले की बताते हैं मजबूरियां,
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.


रचनाकार- श्री ए. कीर्तिवर्धन


मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश 

3 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति आस्था गहन करती हुई ...
    शुभकामनायें ॥

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  2. "aastha ke aadhar par aage barte jate hai,aastha ke phool kabhi murjhate nhi hai"sunder bhaw liye ek behad shandar rachna,sunder likne ke liye kirtivardhan ji badhai ho,

    ReplyDelete

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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