सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Wednesday, September 10, 2014

चरित्रहीन (लघु कथा)


धीरज दूध की डेयरी पर खड़ा दोस्तों के साथ गप्प मार रहा था। किसी भी लड़की को बात ही बात में चरित्रहीन कर देना उसकी बुरी आदत थी. अभी किसी बात पर बहस हो ही रही थी कि सामने से एक लड़की आती हुई दिखी।
धीरज अपनी आदतानुसार शुरू हो गया, " पता है कल्लू वो जो सामने से लड़की आ रही है न उससे मेरी दोस्ती करीब एक साल तक रही। हम दोनों ने साथ-साथ खूब मस्ती की।"
"पर धीरज वो लड़की तो देखने में बहुत शरीफ लग रही है फिर तेरे जैसे इंसान से उसने दोस्ती कैसे कर ली?" कल्लू ने हैरान हो पूछा।
धीरज खिसियाते हुए बोला, "अबे साले वो देखने में ही सीधी लगती है, लेकिन है बिलकुल चरित्रहीन. जाने कितनों से उसका याराना है।" 
तभी बगल में खड़े एक नौजवान ने धीरज का कॉलर पकड़ लिया, "वो लड़की ऐसी नहीं है। मैं उसे बचपन से जानता हूँ।"
धीरज घबराते हुए अकड़ा, "अबे कौन है तू और उस लड़की को कैसे जानता है?''
धीरज बेहोश होने से पहले केवल इतना सुन पाया, "मैं उस लड़की का सगा भाई हूँ।"

लेखक: सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 
*कार्टून गूगल बाबा से साभार 

No comments:

Post a Comment

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!