बहुत अजीब है
ये शहर..
रखते हैं यहाँ सब
एक चेहरे में कई चेहरे
बिछती है बिसात यहाँ
सड़कों पर....
मरते-कटते हैं
रोज़ मोहरें....
जरुरत होती है
इन्सां को
दो गज ज़मीन की
फिर भी करते हैं
तेरा-मेरा.......
दीखते हैं जितने सफेदपोश
दाग हैं
उतने ही गहरे.....
पी-पी के दंगों का जहर
पड़ गया है नीला
ये शहर......
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
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