बकरी चराने गई बिटिया को
जरा सी देरी हो जाने पर
पढने जाने की फिक्र को लिए
माँ पुकार रही बिटिया को ।
आवाज पहाड़ों से टकराकर
गुंजायमान हो रही
नदी भी ऐसे लग रही
मानो वो भी बिटियाँ को
ढूंढ़ने में बहते हुए
अपना दायित्व निभा रही हो ।
शिक्षा से ही बिटिया ने पा लिया
एक दिन बड़ा ओहदा
माँ की याद आने पर
आज बिटिया ने पहाड़ों पर से
पुकारा जब अपनी माँ को ।
तब पहाड़ हो चुके थे मोन
नदी भी हो चुकी थी सूखी
बकरियां भी हो गई गुम ।
सूना लगने लगा घर ।
क्योकि इस दुनिया में नहीं है माँ
बिटियाँ को शिक्षा का दायित्व
देते हुए देखा था
इसलिए ये सभी मोन होकर
दे रहे है माँ को श्रद्धांजलि।
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सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!