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Sunday, October 27, 2013

कविता: दायित्व



बकरी चराने गई बिटिया को
जरा सी देरी हो जाने पर
पढने जाने की फिक्र को लिए 
माँ पुकार रही बिटिया को ।



आवाज पहाड़ों से टकराकर
गुंजायमान हो रही 
नदी भी ऐसे लग रही
मानो वो भी बिटियाँ को
ढूंढ़ने में बहते हुए
अपना दायित्व निभा रही हो ।

शिक्षा से ही बिटिया ने पा लिया
एक दिन बड़ा ओहदा
माँ की याद आने पर 
आज बिटिया ने पहाड़ों पर से
पुकारा जब अपनी माँ को ।

तब पहाड़ हो चुके थे मोन
नदी भी हो चुकी थी सूखी
बकरियां भी हो गई गुम ।
सूना लगने लगा घर ।

क्योकि इस दुनिया में नहीं है माँ
बिटियाँ को शिक्षा का दायित्व
देते हुए देखा था
इसलिए ये सभी मोन होकर
दे रहे है माँ को श्रद्धांजलि।


संजय वर्मा "दृष्टि "

125,शहीद भगत सिंग मार्ग 
मनावर ,धार (मप्र )454446 

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