तन्हाई भरी रातों मे
अक्सर....
आँखों के बंद होने से पहले
कुछ धुंधले से साए
जाग जाते हैं,
कुछ आँखों मे नज़र आते हैं
कुछ आँखों से नज़र आते हैं
फिर .....
कुछ टूटे हुए लम्हे
कुछ छूटे हुए लम्हे
चुभो देते हैं नस्तर
दिल तक.....
तो कभी रूह तक...
आँखों की नमी भी सुख जाती है
उस दर्द की तपिश मे
जो महसूस होती है
यादों के टूटे हुए शीशों के टुकड़ों से
चुपके से धंस जाते हैं शरीर मे
और..
निकल पड़ती हैं लहू की बूंदें
दर्द के रूप मे.....
और हम करवटें दर करवटें
बदलते रहते हैं
तन्हाई भरी रातों मे
अक्सर.....
आँखों के बंद होने से पहले |
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
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