पत्तियों का डाली से
छूटना आया
पतझर में जैसे वृक्ष को
रोना आया
परिंदों का था ये
पत्तियों का पर्दा
छाँव छूटी और तपिश
गहराया |
पत्तियां भी होती
बेटियों की तरह
वृक्ष / घर को ये कर
जाती सूना
रूठ कर करती है जिद्दी
फरमाइशें
पिता /वृक्ष कर देते
पूरी फरमाइशें |
नई कोपलें फूटने पर कोयल
गाती
सूनेपन में फिर से खुशिया
छा जाती
पूजे जाते हैं आज भी
वृक्ष और बेटियां
वृक्ष पर ना करो वार ,ना करो भ्रूण -हत्या |
बेटियां रो - रोकर कह रहीं ईश्वर से
कब ख़त्म होंगे भ्रूण
हत्याओं के पाप
पर्यावरण / रिश्ते हो
जायेंगे जब ख़त्म
दुनिया करने लगेगी तब
फिर संताप |
बेटियां और वृक्ष से ही तो कल है
इनसे ही जीवन जीने का एक - एक पल है
संकल्प लेना होगा इन्हें बचाने का आज
दुनिया बचाने का होगा ये
ही एक राज |
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सुमित प्रताप सिंह,
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