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Saturday, January 12, 2013

शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 22

विषय: भ्रष्टाचार 

भ्रष्ट आचरण कर रहेक्या नेता क्या दास
लोकतन्त्र में अब करेंकिस पर हम विश्वास

जनता का धन लूटकरजो-जो बने नवाब
देना होगा एक दिनउनको सभी हिसाब

अफसर नेता मंतरीबैठे खोल दुकान
सब मिल-जुल कर खा रहेमेरा देश महान

दूजे का हक मारनाजब लगता अधिकार
मन में आ जमता तभीगुपचुप भ्रष्टाचार

अधिकारी नेता जपेंघोटालों का मंत्र
लोकतंत्र जैसे हुआअब घोटाला-तंत्र

इच्छाएं बढ़ती  रहीं,  लालच बढ़ा अपार
मिल-जुल कर सबने किया जब-जब भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचारी हो गयाजब कुल शासनतंत्र
जनता ने मजबूर होफूँका अन्ना-मंत्र

सौ दिन भ्रष्टाचार केजनता का दिन एक
होगा तेरा हश्र क्यादेख सके तो देख

जीवनभर जिसने कियाधन दौलत एकत्र
कौड़ी में बिकता मिलाउस राजा का छत्र

अवसर पाकर भी नहींखोता जो ईमान
भ्रष्टाचारी पंक मेंवो है कमल समान

रचनाकार: श्री मनोज अबोध 
रोहिणीदिल्ली 

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