विषय: भ्रष्टाचार
भ्रष्ट आचरण कर रहे, क्या नेता
क्या दास
लोकतन्त्र में अब करें, किस पर हम
विश्वास
जनता का धन लूटकर, जो-जो बने
नवाब
देना होगा एक दिन, उनको सभी
हिसाब
अफसर नेता मंतरी, बैठे खोल
दुकान
सब मिल-जुल कर खा रहे, मेरा देश
महान
दूजे का हक मारना, जब लगता
अधिकार
मन में आ जमता तभी, गुपचुप
भ्रष्टाचार
अधिकारी नेता जपें, घोटालों का
मंत्र
लोकतंत्र जैसे हुआ, अब
घोटाला-तंत्र
इच्छाएं बढ़ती रहीं, लालच बढ़ा अपार
मिल-जुल कर सबने किया , जब-जब भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचारी हो गया, जब कुल
शासनतंत्र
जनता ने मजबूर हो, फूँका ‘अन्ना-मंत्र’
सौ दिन भ्रष्टाचार के, जनता का दिन
एक
होगा तेरा हश्र क्या, देख सके तो
देख
जीवनभर जिसने किया, धन दौलत
एकत्र
कौड़ी में बिकता मिला, उस राजा का
छत्र
अवसर पाकर भी नहीं, खोता जो ईमान
भ्रष्टाचारी पंक में, वो है कमल
समान
रचनाकार: श्री मनोज अबोध
रोहिणी, दिल्ली
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