विषय: भ्रष्टाचार
भारतीय राजनीति के
पानी में
मजे ले रही
लोट लगा रही
जुगाली कर रही
भ्रष्टाचार की
मरखनी, काली
भैंस।
चरवाहा खड़ा
बाहर असहाय
कर रहा
विफल प्रयास
उसे बाहर निकालने का।
चर जाती यह
नैतिकता, ईमानदारी की
हरी घास
चट कर जाती
देश - प्रेम, निष्ठा का
भूसा।
हर ओर मुँह मारती
सब कुछ को खाती
मोटी होती जाती
यह भ्रष्टाचार की
मरखनी, काली
भैंस।
झूठ - फरेब के
बड़े - बड़े सींग
पटकनी देती
अपने ही मालिक को
कानून सी
लंबी पूँछ
मक्खियाँ उड़ाती।
फर्जी खातों से थन
कितना भी खींचो
निकले न दुग्ध-कण
फिर भी देश के
हर कोने में
छा रही
फलती-फूलती
जा रही
यह भ्रष्टाचार की
मरखनी, काली
भैंस।
रचनाकार: डॉ. रवि शर्मा 'मधुप'
इस महिसासुर को निकलने के लिए महिसासुर मर्दिनी को आना पड़ेगा .समय का इन्तेजार है.
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