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Friday, July 13, 2012

महिलाओं का दर्द महिला की ही जुबानी


   ज के पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपना वर्चस्व बनने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.आज हम समानता की बात तो करते है.पर समानता है कहाँ? न देश में,न परिवार में और नसमाज में.महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसरों में कमी दिखाई देती है.हर तरफ एक असमानता की होड लगी है.आज लड़की के जन्म पर मातम का माहौल हो जाता है वही लड़के के जन्म पर खुशी का ठिकाना नहीं रहता.गांव में तो लड़की को पढ़ने के अवसर भी नहीं दिए जाते हमेशा कहा जाता है तू पढकर क्या करेगी. बेटा पढ़ लिखकर जिम्मेदारी संभालेगा  तुझे तो घर संभालना है इस लिए घर के काम सीख जो तेरे काम आयेंगे पर कोई ये क्यूँ नहीं सोचता की एक माँ का शिक्षित होना भी तो जरुरी है.दरअसल माँ शिक्षित होगी तो परिवार,फिर समाज और देश शिक्षित होगा.आज हम महिला सशक्तिकरण की बात करते है. पर क्या हम सच में महिलाओं को आत्मनिर्भर देखना चाहते है? शायद नहीं तभी तो हम आज  महिलाओं की प्रगति में रोडे अटकाते है. आज हम महिलाओं को शिखर पर पहुँचता देखकर खुश नहीं होते.कहीं न कहीं हमारा पुरुष अहम सामने आ ही जाता है.हम महिला दिवस मनाने की औपचारिकता भी हर साल पूरी करते है. पर क्या उस आयोजन में कुछ सार्थक कदमउठाते है जो वाकई महिलाओं के लिए नए अवसरों का आगाज़ हो?छोटे बड़े  शहरों  में आज लड़की का जन्म एक अभिशाप के तौर पर देखा जाता है.उसे जन्म से पहले या जन्म के बाद मार डालते है परिवार इसी डर में जीता है कि बड़ी होने पर शिक्षा दिलाना पड़ेगा ,शादी होने पर दहेज देना पड़ेगा और  इन सब से छुटकारा पाने के लिए वो लोग लड़की को खत्म करना ही आसान समझते है. ८ मार्च को हम महिला दिवस मनाते है.जिसके तहत बहुत सारे देशों में  महिलाओं के सम्मान में अवकाश तक घोषित किया जाता है.भारत में भी अनेक आयोजन होते है.पर क्या यह आयोजन काफी है भारत जैसे देश की महिलाओं की दशा सुधारने के लिए जहाँ गांव में महिलाएं अशिक्षित और दीन-हीन स्थिति में रहने को मजबूर है.वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों से भी अनजान है.वैसे शहरों में स्थिति कुछ ठीक है. शहरों में महिलाएं गांव के अनुपात में ज़्यादा शिक्षित है. पर गांव और शहरों में बलात्कार के दानव ने महिलाओं का जीना दूभर कर दिया है.आज महिलाएं अपने को कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही है.उन्हें हर वक्त अनहोनी का डर बना रहता है. आज महिलाओं को अलग कतार की दरकार नहीं. अब उन्हें किसी सहारे की जरुरत नहीं. महिलाएं अपनी क़ाबलियत साबित करने में लगी है.आज महिलाएं शून्य से शिखर तक पहुंचना चाहती है.आज महिलाओं ने हर छोर को छूने की कोशिश की और सफल भी हो रही है.जिनमे खेलनृत्यराजनीतिपर्वतारोहण,न्यायालय सब कुछ शामिल हैं.कुदरती तौर पर महिलाएं मल्टी टास्किंग में माहिर है.महिला आज माँ,पत्नीबेटीबहु,जिठानी,भाभी जैसे रिश्तों की मान मर्यादा सँभालने के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर रहती है.अततः उनका आत्मनिर्भर बनना देश ही नहीं दुनिया की जरुरत है.जब लड़की शिक्षित होगी तभी तो वो अपने अधिकारों को लेकर सजग होगी. पिछले साल देश को पहली महिला राष्ट्रपति,पहली महिला सभापति मिलने का गर्व हुआ.महिलाओं को अपनी कल्पनाओं को पंख लगाने में हम भी सहयोगी बने.लेकिन महिलाएं तेजी से ग्लैमर की चकाचौंध से प्रभावित हो रही है.ये गलत है क्योंकि एक ऑब्जेक्ट बनने की चाह  उन्हें इज्ज़त नहीं दिला सकती. महिला दिवस मनाते हुए हमें  कुछ सार्थक कदम उठाने होंगे.महिला सशक्तिकरण को पूर्णत अपनाना होगा और महिलाओं को उनका असली मुकाम दिलाना होगा. एक नारी होने के नाते हमें भी नारी जाति को शिक्षित करने और सशक्त बनाने में हर संभव सहयोग का प्रण करना होगा और उस प्रण को निभाना होगा.तभी हम महिला दिवस पर अपने पूर्ण आत्मनिर्भरता और ससम्मान जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे.

3 comments:

  1. आज हालात बहुत बदल चुके हैं और स्त्रियों की वह दशा वह नहीं है जो आलेख में प्रस्तुत की है. कुछ अपवादों को छोड़ कर बेटियों को भी उतना ही प्यार मिल रहा है जितना बेटों को. स्त्रियां समाज के हरेक क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. महिलाएं कहाँ कमजोर हैं, जो उनके शशक्तिकरण का प्रश्न उठे? आज महिलाओं के लिये बनाये गये सभी कानूनों का किस तरह उनके द्वारा पतियों और उनके परिवारों को पीड़ित करने के लिये किया जा रहा है वह छुपा नहीं है. आवश्यकता है एक उचित और सार्थक संतुलन बलाने की.

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सुमित प्रताप सिंह,
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