किरण बेदीजी से पहली बार मुलाकात दिल्ली पुलिस की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी। रंगरूट के रूप में उनका पहला भाषण अभिभूत होकर सुना था। पुलिस की पारंपरिक ट्रेनिंग को उन्होंने नया रूप प्रदान किया था। इससे पहले पुलिस की ट्रेनिंग अंग्रेजी तरीके से ही होती थी जिसमें ट्रेनिंग देनेवाले अंग्रेजों की भूमिका होते थे और ट्रेनिंग लेनेवाले भारतीयों की। ट्रेनिंग में ट्रेनीज पर इतना अत्याचार किया जाता था कि कुछ तो परेशान होकर त्यागपत्र देकर ट्रेनिंग से रवानाहो जाते थे। इस परम्परा को किरणजी ने बदला। पुलिस ट्रेनिंग के अलावा उन्होंने तिहाड़ जेल व होमगार्ड की पोस्टिंग के दौरान सार्थक कदम उठाकर तिहाड़ जेल के कैदियों और होमगार्ड का भला किया जिसे आज भी याद किया जाता है। किरणजी दिल्ली पुलिस की आयुक्त बनने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दावेदार थीं लेकिन उनकी वरिष्ठता और उनकी कर्मठता को न देखकर उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार उठवाने की सज़ा के तौर पर इस पद के अयोग्य कर दिया गया। ये उनका नहीं बल्कि हम दिल्लीवासियों का दुर्भाग्य था। उस समय मैं जब उनसे मिलने गया था तो उनके साथ हुए अन्याय को देखकर मेरी भी आँखें नम हो गई थीं। फिर किरणजी ने जब अन्ना के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया था तो उनके रूप में ऊर्जा से ओतप्रोत एक नई किरण का आभास हुआ था। एक साजिश के तहत इस आंदोलन को कुचल दिया गया, लेकिन देश की जनता उनका बदला लिया देश को नरेन्द्र मोदीजी के रूप में एक सशक्त नेतृत्व प्रदान किया। अब जब समय आया कि किरणजी से हुए अन्याय की भरपायी करके उन्हें दिल्ली की कमान सौंपकर पिछले एक साल से अक्षम पड़ी दिल्ली को प्रगति के पथ पर बढ़ने का यत्न किया गया तो दिल्ली को 49 दिनों में छोड़कर भागने वाले किरणजी को अवसरवादी घोषित कर स्वयं को पुण्यात्मा सिद्ध करने का षड़यंत्र कर रहे हैं अब ये और बात है कि कभी उन्होंने ही किरणजी को अपने दल का नेतृत्व करने को निमंत्रित किया था। जहाँ तक ज़मीन से जुड़ा होने की बात है तो उनके अंतर्गत कार्य कर चुके एवं उनसे किसी न किसी प्रकार जुड़े व्यक्ति भली-भांति बता सकते हैं कि वो वास्तव में ज़मीन से जुड़ी हुई इंसान हैं।फिर देखिये ज़मीन से जुड़े तथाकथित व्यक्ति के दल के ही लिव इन रिलेशन के नाम पर घर पर रखैल रखकर भोग-विलास करनेवाले एक महोदय ने अभी कुछ दिन पहले किरणजी के साथ अभद्रता की भी हद ही पार कर दी। कई दशक बढ़िया प्रशासक की भूमिका का निर्वहन करते हुए देश-विदेश में दिल्ली और भारत का नाम रौशन करनेवाली किरणजी की तुलना एक असफल शासक से, जो दिल्ली की प्रगति को कई साल पीछे ले जाने का भी जिम्मेदार है, करना उनके साथ फिर से अन्याय करना ही होगा। अब आप दिल्लीवासियों पर निर्भर करता है कि जैसे पूरे देश ने नरेन्द्र मोदीजी को देश का नेतृत्व सौंपकर एक सुदृढ़ शासन प्रदान किया वैसा शासन किरणजी के नेतृत्व में प्रदान करते हैं या नहीं। या फिर दिल्ली और दिल्ली की आशा की किरण किरण बेदीजी की झोली में इस बार भी अन्याय ही हासिल होता है।
लेखक: सुमित प्रताप सिंह
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सुमित प्रताप सिंह,
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