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Tuesday, May 7, 2013

कविता: बिटिया बिना

स्कूल की  जब होती छुट्टी
ऐसा लगता मानों बगीचे में उड़ रही हो 
रंग -बिरंगी तितलिया ।
तुतलाहट भरी मीठी बोली से 
पुकारती अपने पापा को 
पापा ...
इतनी सारी नन्ही रंग -बिरंगी तितलियों में 
ढूढ़ने लग जाती पिता की आंखे ।
मिलने पर उठा लेते मुझको वे गोद में 
तब ऐसा महसूस होता है 
मानो दुनिया जीत ली हो 
इस तरह रोज जीत लेते हैं मेरे पापा दुनिया ।
मेरी हर जिद को पूरी करते है पापा 
मै जिद्दी भी इतनी नहीं हूँ  
किन्तु जब मै रोती हूँ तो 
पापा की आँखें रोती हैं ।
सच कहूँ ,यदि मै नहीं होती तो 
मेरे पापा क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ बेटियाँ नहीं होती तो 
उनके पापा कैसे जीते होंगे ?
बेटी के बिना ।
 रचनाकार: संजय वर्मा "दृष्टि "

संपर्क: १ २ ५, शहीद भगत सिंह मार्ग 
मनावर, जिला -धार ( म. प्र. ) 

4 comments:


  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  2. वाकई बेटियाँ जान होती हैं अपने माता-पिता की ! प्यार से लबरेज बहुत ही सुंदर रचना !

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  3. बेटि‍यां जान होती हैं...घर की शान होती है..बहुत खूब लि‍खा

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सुमित प्रताप सिंह,
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