सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Tuesday, September 4, 2012

गीत: पहले तो फ़िल्में होती थीं स्वस्थ मनोरंजन



पहले तो फ़िल्में होती थी स्वस्थ मनोरंजन |

सामाजिक हित सोच लगते थे निर्माता धन ||

गीत सभी उन फिल्मों के मनभावन होते थे |

दृश्य सभी आकर्षक ,मोहक, पावन होते थे ||
कलाकार वे सभी आज भी उर में बैठे हैं |
अभिनेता संगीत व् गायक सुर में पैठे हैं ||
गीत कहानी लेखन में लग जाता था तन ,मन |
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||

किन्तु आज की फ़िल्मी दुनिया बेहद सस्ती है |
यीलू- ईलू गाकर ये तो करती मस्ती है ||
गीतकार चोली के नीचे झांक रहा इसका | 
अभिनेता भी कटि प्रदेश में ताक रहा इसका ||
लाभ किसी भी भांति मिले बस होता यही जतन | 
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||

अब तो यारों यहाँ जिगर से बीडी जलती है |
खुल्लम खुल्ला प्यार करें ये आह निकलती है ||
भोली - भाली मुन्नी को बदनाम किया इसने |
सौम्य सुशीला शीला को नीलम किया इसने ||
भारतीय संस्कृति का फिल्मों ने कर दिया हवन ||
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||

खेत गए बाबा बजार माँ घर आ जा बलमा |
सरकावो खटिया सा घटिया छेड़ रहे नगमा |
निज गीतों में दुनिया की ऐसी तैसी करते |
अर्थ भाव से शून्य गीत रच तनिक नहीं डरते |
अच्छे गीत हुए फिल्मों में पूरी तरह सपन ||
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||

शयन कक्छ में पर्दे पर प्रियतम सँग सोने की |
बालाओं में होड़ लगी है नंगी होने की ||
दोषी सब क्यों इन दृश्यों में मन लगता सबका |
अति हो गयी बहुत अब संभले हर कोई तबका ||
फिल्म कार ,हे गीतकार तुम भी कुछ करो मनन |
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||



गीतकार- श्री अशोक पाण्डेय "अनहद"




लखनऊ, दूरभाष- 09415173092

No comments:

Post a Comment

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!