पहले तो फ़िल्में होती थी स्वस्थ मनोरंजन |
सामाजिक हित सोच लगते थे निर्माता धन ||
गीत सभी उन फिल्मों के मनभावन होते थे |
दृश्य सभी आकर्षक ,मोहक, पावन होते थे ||
कलाकार वे सभी आज भी उर में बैठे हैं |
अभिनेता संगीत व् गायक सुर में पैठे हैं ||
गीत कहानी लेखन में लग जाता था तन ,मन |
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||
किन्तु आज की फ़िल्मी दुनिया बेहद सस्ती है |
यीलू- ईलू गाकर ये तो करती मस्ती है ||
गीतकार चोली के नीचे झांक रहा इसका |
अभिनेता भी कटि प्रदेश में ताक रहा इसका ||
लाभ किसी भी भांति मिले बस होता यही जतन |
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||
अब तो यारों यहाँ जिगर से बीडी जलती है |
खुल्लम खुल्ला प्यार करें ये आह निकलती है ||
भोली - भाली मुन्नी को बदनाम किया इसने |
सौम्य सुशीला शीला को नीलम किया इसने ||
भारतीय संस्कृति का फिल्मों ने कर दिया हवन ||
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||
खेत गए बाबा बजार माँ घर आ जा बलमा |
सरकावो खटिया सा घटिया छेड़ रहे नगमा |
निज गीतों में दुनिया की ऐसी तैसी करते |
अर्थ भाव से शून्य गीत रच तनिक नहीं डरते |
अच्छे गीत हुए फिल्मों में पूरी तरह सपन ||
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||
शयन कक्छ में पर्दे पर प्रियतम सँग सोने की |
बालाओं में होड़ लगी है नंगी होने की ||
दोषी सब क्यों इन दृश्यों में मन लगता सबका |
अति हो गयी बहुत अब संभले हर कोई तबका ||
फिल्म कार ,हे गीतकार तुम भी कुछ करो मनन |
पहले तो फिल्मे होती थीं स्वस्थ मनोरंजन ||
गीतकार- श्री अशोक पाण्डेय "अनहद"
लखनऊ, दूरभाष- 09415173092
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!