तस्वीर गूगल बाबा की इनायत से |
कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुज़ारी है
न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है
न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है
लाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा है
उनसे किस तरह कह दें कि उनकी सूरत प्यारी है
निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है
बादल बेरुखी के दिखने पर भी क्यों मुहब्बत में
हमको ऐसा लगता कि उनसे अपनी यारी है
परायी दुनिया में गम अपने ही दिखते हैं
आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है
ये सांसे, ये जिंदगी सब कुछ तो है पराया
परेशां “मदन” है कि बढ़ती क्यों खुमारी है
परायी दुनिया में गम अपने ही दिखते हैं
आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है
ये सांसे, ये जिंदगी सब कुछ तो है पराया
परेशां “मदन” है कि बढ़ती क्यों खुमारी है
रचनाकार: श्री मदन मोहन सक्सेना
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