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Saturday, May 3, 2014

व्यंग्य कविता : खुल गई पोल

ऐसे नेता को क्या कहिए
जो पीटे हिन्दू-मुस्लिम राग
सांप्रदायिकता का बिगुल
बजा कर लगाये देश मे आग 
ऐसे नेता .......
जिनका कोई ईमान नहीं 
धर्म से कोई प्रेम नहीं 
राष्ट्र प्रेम का ढोंग दिखाएँ 
बेबस जनता को लूटें खाएं 
ऐसे नेता .......
गिरगिट से होते नेता 
पल मे रंग बदलते नेता 
पल मे तोला पल मे माशा 
खूब दिखाते रोज तमाशा 
ऐसे नेता .......
हाथ जोड़ ये दौड़े आते 
झोली फैला वोट मांगते 
नंगे पाँव सड़क पर चलते 
जनता के भोलेपन को छलते
ऐसे नेता .......
संसद हो या सड़क खूब मचाएँ शोर 
फडकाएं  बाजू और दिखलाएं ज़ोर 
देते मूँछों पर रह रह  ताव 
जनता की हरदम डुबोए नाव 
ऐसे नेता .......
कटते जाएँ शीश पर शीश 
ये   काढ़ें दाँत बन खब्बीस  
हुआ धमाका खुल गई पोल 
बज रही थी कारनामो की ढ़ोल 
ऐसे नेता .......
जीत जब ये पाएँ कहीं 
फिर पहचान पाएँ नहीं 
दर-दर भटके बेबस जनता 
पर अब इसका काम न बनता 
ऐसे नेता .......
इनका चलता ए सी फुल 
जनता की रहती बिजली गुल 
सफ़ेद पोश ये करते लक दक 
सुख सुविधाओं पर इनका हक 
ऐसे नेता .......
रंगे सियार ये कहायेँ 
निसदिन गंगा मे नहाएँ 
यहाँ-वहाँ करके रैली 
मानस गंगा करते मैली 
ऐसे नेता .......
अब नेता लाओ कोई ऐसा चंगा 
किसी लहू से जो नाहो  रंगा 
भ्रष्टाचारी को कर दे जो नंगा 
जो ना भड़काए देश मे दंगा 
ऐसे नेता .......

अन्नपूर्णा बाजपेई 'अंजु'
कानपुर, उ.प्र.

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