आज मन बहुत आंदोलित है
बहुत व्यथित है...शायद
कर रहा है....चीत्कार भी
और कुछ प्रतिकार भी
कभी
गहन विचार में डूब जाता है
कभी
बहुत कुछ कह जाता है
कभी हो जा रहा है..मौन
कभी मचा रहा है...शोर
जाने कैसे-कैसे सवाल पूछ रहा है !!!
मेरा मन....
मुझसे......
कुछ सवालों का तो जवाब भी नहीं है
मेरे पास
कुछ सवालों से चुरा रहा हूँ नज़रें भी
मै...
बगलें झाँकने लगा हूँ....
माथे पर
पसीनो की बूंदें आ गयी हैं
उफ़ !!!!!!!
कितना मुश्किल है
खुद के भीतर
झांकना
खुद से सवाल करना ........
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
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सुमित प्रताप सिंह,
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