सब के हैं अपने-अपने आसमान
हर आसमान का है रंग जुदा-जुदा
सब के आसमान का हैं अपना एक चाँद
और एक सूरज भी...
हर किसी की हैं चाहतें
और कुछ हसरतें भी...
हर कोई चाहता है मुझ से सब कुछ
पर ना जाने कहाँ खो गया हूँ 'मै'
'मै' में 'मै' को तलाशता हुआ...
'खुद' में 'खुद' को ढूंढ़ता हुआ...
खुद की चाहतों को सांसों के साथ भिगोता हुआ...
अपनी उम्मीदों को पलकों पे सजाता हुआ....
इंतज़ार है खुद की चाहतों का.....
उम्मीदों का....
कभी तो वो सांस लेंगी.....
कभी तो उनमे उड़ान होगी...
.
कभी तो मेरा आसमान भी किसी को नज़र
आएगा....
मेरी उम्मीदें....
मेरी चाहतें.....
और
मुझे...
कभी तो कोई समझेगा...
रविश
'रवि'
फरीदाबाद (भारत)
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