स्कूल की जब होती छुट्टी
रचनाकार: संजय वर्मा "दृष्टि "
ऐसा लगता
मानों बगीचे में उड़ रही हो
रंग -बिरंगी
तितलिया ।
तुतलाहट भरी
मीठी बोली से
पुकारती अपने पापा को
पापा ...
इतनी सारी
नन्ही रंग -बिरंगी तितलियों में
ढूढ़ने लग
जाती पिता की आंखे ।
मिलने पर उठा
लेते मुझको वे गोद में
तब ऐसा महसूस
होता है
मानो दुनिया
जीत ली हो
इस तरह रोज
जीत लेते हैं मेरे पापा दुनिया ।
मेरी हर जिद
को पूरी करते है पापा
मै जिद्दी भी
इतनी नहीं हूँ
किन्तु जब मै रोती हूँ तो
पापा की आँखें
रोती हैं ।
सच कहूँ ,यदि मै नहीं होती तो
मेरे पापा
क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ
बेटियाँ नहीं होती तो
उनके पापा
कैसे जीते होंगे ?
बेटी के बिना
।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
वाकई बेटियाँ जान होती हैं अपने माता-पिता की ! प्यार से लबरेज बहुत ही सुंदर रचना !
ReplyDeleteबेटियां जान होती हैं...घर की शान होती है..बहुत खूब लिखा
ReplyDeletebahut sundar
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