नैना नचाते, केशों को झटकाते वो आईं और बोलीं
“बहना बड़े मुश्किल हैं धर्म के क़ानून कायदे,
सिर पर रखो पल्ला और बड़ों के रोजाना पैर छूना,
कितना ओल्ड फैशन है घर लड्डू गोपाल पूजना,
बेटा स्कूल जाने पर गिट पिट अंग्रेजी में बोलता है
सच कहूँ तो तभी अपना जीवन सफल सा लगता है.
संस्कृत
में मन्त्र और कोई चालीसा समझ नहीं आता है
लिखा है
क्या उनमें कुछ पता नहीं चल पाता है,
और क्यों
मैं पूजू राम को जिन्होंने बीवी को निकाला,
और कृष्ण
को जिन्होंने रास का ही था रंग दिखाया.”
मैंने
कहा “क्यों विकृत मन से मेरे राम का नाम लेती हो?
क्यों
अज्ञानता में बहकर अपने धर्म को कोसती हो?
धर्म के
कायदे बहुत सहज है जैसे बहता पानी,
नहीं समझ
पाते हैं धर्म को तुम जैसे सतही अज्ञानी,
धर्म
नहीं कहता सिर पर पल्ला या घूंघट रखो तुम,
धर्म है
कहता बड़ों के लिए आँखों में आदर रखो तुम,
समाज में
उनको मान दो, परिवार की पहचान दो,
अपने बड़े
बुजुर्गों को मन से बस सम्मान दो,
अरे धर्म
तो वो सागर है जिसमें मन का पाप बहाकर
मिल जाते
हैं हम सभी अपने सारे बैर भाव भुलाकर.
तुम भी
छोड़ो ये छद्म आधुनिकता और राम कृष्ण को जानो
नहीं तो
अपने पतन को तुम निश्चित ही मानो.
कल
तुम्हारा संस्कार रहित बेटा जब तुमको गरियाएगा,
तब
तुम्हें अपनी गलती का अहसास हो पाएगा,
तो पूजो
अपने बड़ों को और प्रभु का जाप करो
अपने मन
से धर्म के प्रति जमे मैल को साफ़ करो,
अपने
धर्म को ठुकरा कर कोई आधुनिक नहीं हो पाया है,
धर्म को
ठुकराने से उसी ने अपना सब कुछ गंवाया है.
माँ-पिता
और धर्म की सेवा, इनका कोई
मोल नहीं है,
इनसे
बढ़कर दुनिया में कोई और अनमोल नहीं है”
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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