विषय:
भ्रूण हत्या
है बेटी का रूप निराला, चेहरे पर लाए सबके मुस्कान
जब
ह्रदय से लग जाती है, मिट जाती सारी थकान
घर आँगन में
घूमती-फिरती, करती सबका सम्मान
है मासूमियत
इतनी अन्दर, सादगी की है पहचान
ब्रह्मा जी
के कर-कमलों से रचाई गई है स्रष्टि
पालक है
वासुदेव इसके, संहारक शिव की दृष्टि
सृष्टि रचने वालो से तू क्यूँ लड़ता है नादान
कन्या पैदा करने से तू क्यूँ डरता है इंसान
कन्या भ्रूण हत्या करने वालो एक दिन पछताओगे
बेटी पैदा नही हुई दुनिया में, तो बहु कहाँ से
लाओगे
बहन, मौसी, बुआ
के रिश्ते दुनिया से मिट जायेंगे
पर्व रक्षा-बंधन का फिर हम कैसे
मना पाएंगे
वक़्त अभी भी हाथ में है जागने और जगाने का
ना करो क़त्ल बेटी का, ये वक़्त है कोख बचाने का
बनकर रक्षक बेटी के तुम,अपना
फर्ज निभाओ
करे कोई ना क़त्ल उसका, सबको ये समझाओ
हो सकता है बेटी कल दुनिया में नाम ऐसा कमाये
शान से मस्तक ऊँचा हो आपका,गर्व
बेटी पर हो जाए
अपनी सोच बदलकर, नया काम
कर जाओ
बेटी को दुनिया में लाने से, कतई
नही घबराओ
कोई भी बदलाव सबसे पहले हम से शुरु होता है......समाज हमशे आप से मिल कर बनता है, हम बदलेंगे हमारा समाज बदलेगा |
ReplyDeleteपहले हम खुद को बदलने ,अपनों को बदले ,अपने आस -पास बदलाव के दीप जले समाज स्वयं ही बदल जायेगा | _/\_
बहुत शानदार और शिक्षाप्रद रचना, आशा है लोग इसे गंभीरता से लेंगे और कन्या भूर्ण हत्या जैसे प्रकृति विनाश को रोकेंगे
ReplyDeleteबेटी को दुनिया में लाने से कतई नहीं घबराओ ,,
ReplyDeleteबस माँ ही सुन सकती थी उसकी करुण पुकार
ReplyDeleteकरना तो बहुत कुछ चाहती थी पर वो थी लाचार
आखिर वो किया कर सकती थी वो डरी सहमी थी औरत
न तो उसमे इतनी हिम्मत थी की वोह करती बग़ावत.......
इस समस्या का समाधान केवल लोगों में जागरूकता के माध्यम से ही आ सकता है। सुंदर रचना.
ReplyDeleteसच में इन्सान कितना बेरहम हो गया है ना ....... अपने अस्तित्व को ही मिटाने पर तुला है :(
ReplyDeleteमै कोई लेखिका नही हूँ ,बस मेरी भी एक छोटी सी कोशिश रहती है कि मै भी कुछ लिखू ,,,,और जो भाव मन में उपजते है ,उन्ही भावों को शब्दों में पिरोकर कागज पर उतारने की कोशिश करती हूँ ,,आप सभी ने मेरी कविता को सराहा मेरे लिए ये भी मेरी खुशनसीबी है ,,और सबसे बड़ी खुशनसीबी ये है कि मेरी कविता को शोभना काव्य पुरस्कार में शामिल किया गया ,,आप सभी का दिल से आभार !
ReplyDelete