हम आज के समय में अपने जीवन में वो सब पाने की लालसा करते है। जो हमारे जीवन
को एक सार्थक आयाम दे सकता है। जो हमें सफल इन्सान के तौर पर स्थापित कर सके। सफलता का
मापदंड पूर्णतः हमारी उपलब्धियों पर निर्भर है,उपलब्धियां सदैव हमें श्रेष्ठता की
ओर अग्रसर होने को प्रेरित करती है और हम
अपनी उपलब्धियों से समाज और देश को प्रगति और खुशहाली के मार्ग पर प्रशस्त कर सकते
है।
हमारे देश में हर क्षेत्र के अपने
नियम कायदे है। जो उसे दूसरे से भिन्न बनाते है, परन्तु हर क्षेत्र का अस्तित्व उसकी
उपलब्धियों से जुड़ा है। देश-समाज में उपलब्धियों का तो भरपूर सम्मान होता है लेकिन
समय के साथ साथ सम्मानित व्यक्ति को हम भूल जाते हैं। कई बार तो हम यह जानने का
प्रयास भी नहीं करते कि अब वे व्यक्ति किस हाल में हैं जिन्हें कुछ साल पहले
सम्मानित किया गया था।
क्या हम जानते है कि इन उपलब्धियों से परे वे अपनी जिंदगी में किस ओर बढ़ते है,
आप सोचेंगे ये किस तरह की बात हुई। सफलता प्राप्त व्यक्ति तो सफल जीवन का आनंद ही
उठाएगा लेकिन हमेशा हकीकत में ऐसा नहीं होता ।मैने ऐसे अनेक उदाहरण देखे,जहाँ
सफलता और पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति एक अदद खुशहाल जीवन तक से मोहताज हैं। फिर चाहे
वे खिलाड़ी हो या सैनिक, गणतंत्र दिवस पर हर साल वीरता पुरस्कार पाने वाले वीर
बच्चे हों या फिर किसी और क्षेत्र में नाम कमाने वाले, सभी दो जून की रोटी के लिए
दूसरों के मोहताज है।चाहे फिर उस खिलाड़ी ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खेलों में
पुरस्कार जीतकर देश का नाम रोशन किया हो,उसके बाद उसे अर्जुन जैसे नामी पुरस्कार ही क्यों ना मिले हो।उसी तर्ज पर
सशस्त्र सेना में सैनिकों को उनकी सर्वोच्च सेवाओं के लिए मिलने वाले चक्र हों या
फिर उनके परिवार दी जाने वाली सहायता या फिर वीर बच्चों को वीरता पुरस्कार के साथ मिलने
वाली सम्मान ।सभी में एक बात समान है कि इन पुरस्कारों पाने वालों के भविष्य को
लेकर कोई प्रयास नही किए जाते, जिस से उनका जीवन पूर्णतः सुरक्षित और सम्मान के
साथ बीते।ऐसे कई उदाहरण देखने में आए है जहां अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
खिलाड़ी आज अपनी जीविका चलाने के लिए या तो अपने पदक बेच कर गुजारा कर रहे हैं या
मजदूरी करने,सब्जी का ठेला लगाने को,चाय की दुकानों में काम करने को विवश है। वीर बच्चों का भी कमोवेश ऐसा ही हाल
देखने में आया है।इसी तरह सैनिकों को बतौर सम्मान जो प्राप्त होता है वो उनके
भविष्य के लिए नाकाफी है।अगर कोई सैनिक युद्ध में या किसी और सुरक्षा गतिविधि जैसे
आतंकी,नक्सली हमले,प्राकृतिक आपदा में में शहीद होते है, तो केंद्र और राज्य
सरकारें उनके परिवारों को आर्थिक मदद देने के वादे तो खूब करती है, पर उन वादों
में से कितनों को अमलीजामा पहना पाते है, ये एक विचारणीय बात है। कितने ही शहीदों
की विधवाओं को इन सहायताओं को पाने के लिए कार्यालय दर कार्यालय ठोकरें खाते सालों
बीत जाते है, हाथ आता है तो आश्वासनों और नए वादों का झुनझुना,जो कहीं ना कही उनकी
उम्मीदों को धूमिल कर देता है। वे इन सहायताओं को भूल कर अपने बल पर नए सिरे से
रोजीरोटी के इंतजाम में लग जाती है। क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को पुरस्कार देने
के बाद इनकी भविष्य की सुरक्षा को भी पुख्ता करने के प्रयासों के साथ नही जोड़
सकते? वास्तव में इन सभी तरह के सम्मानों में दी राशि इतनी नही है कि वो इनके
वर्तमान के साथ-साथ इनके भविष्य को भी सुरक्षित कर दे। इन सम्मानों के साथ एक जो
जरूरी बात हमारी सरकारों को ध्यान देनी चाहिए वो है कि इन सभी क्षेत्रों के लोगों
के भविष्य के लिए कोई ऐसी योजना तैयार होनी चाहिए जो इनको भविष्य में मजदूरी करने
जैसे कामों को ना करना पड़े। इनके परिवारों को इनके खिलाड़ी, वीर बच्चे, सैनिक होने
पर गर्व हो ना कि शर्मिंदगी क्योंकि कही ना कही ये हमारे देश की धरोहर है जिन्हें
संरक्षित करने की दरकार है।जो आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए समर्पित और न्यौछावर
होने के प्रेरणास्रोत है।
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!