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Friday, March 20, 2015

दुःख (लघु कथा)


फे और जिले कैंटीन में चाय पी रहे थे। तभी कैंटीन के बगल से निकल रही एक महिला को देखकर नफे बोला, "इस उजाड़ सरकारी दफ्तर में ये हसीन औरत क्या कर रही है?" 
जिले ने बताया, "इसका पति सूबे कुछ महीनों पहले ही सड़क दुर्घटना में मारा गया था। अब ये बेचारी अपने पति के बदले नौकरी पाने के लिए सरकारी दफ़्तरों के चक्कर काट रही है, ताकि यह अपना और अपने छोटे-छोटे बच्चों का पेट पाल सके"।
नफे ने जोर से साँस लेते कहा, "ओहो इतनी भरी जवानी में इसने अपना पति खो दिया। इसकी पतली कमर और हिरनी सी चाल देखकर तो कोई भी अपना सबकुछ लुटा दे। इसको देखकर मेरा तो कलेजा दुःख के मारे फटा जा रहा है"।
"सही कह रहा है नफे। ईश्वर न करे कभी हम भी किसी सड़क दुर्घटना में मारे जाएँ और हमारी पत्नियाँ भी इसी तरह भटकते हुए धक्के खा रही हों तब हम जैसे भले लोगों का उनकी जवानी को देखकर शायद ऐसे ही दुःख के मारे कलेजा फटा करेगा"। जिले के इतना कहते ही कैंटीन के उस कोने में सन्नाटा छा गया।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 

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निवेदक-
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