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Monday, March 23, 2015

ग़ज़ल

फिरेंगे दर बदर सोचा नहीं था।।
मैं निकला था अकेले ही सफ़र पर।
मिलेगा हमसफ़र सोचा नहीं था।।
न उसने कद्र की माँ बाप तक की।
गिरेगा इस कदर सोचा नहीं था।।
पता था उम्र काट जायेगी तुझ बिन।
कटेगी यूँ मगर सोचा नहीं था।।
अता करके मुझे वो अपनी रहमत।
करेगा मोतबर सोचा नहीं था।।
'असर' यूँ छोड़ देगा राह में तू।
कभी ए राहबर सोचा नहीं था।।
प्रमोद शर्मा 'असर'
नई दिल्ली, भारत 

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