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Tuesday, March 11, 2014

नीला शहर

बहुत अजीब है 
ये शहर..
रखते हैं यहाँ सब
एक चेहरे में कई चेहरे

बिछती  है बिसात यहाँ
सड़कों पर....
मरते-कटते हैं
रोज़ मोहरें....

जरुरत होती है
इन्सां को
दो गज ज़मीन की
फिर भी करते हैं
तेरा-मेरा....... 

दीखते हैं जितने सफेदपोश
दाग हैं
उतने ही गहरे.....

पी-पी के दंगों का जहर
पड़ गया है नीला

ये शहर......

रविश 'रवि'
फरीदाबाद

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