मस्तक पर धारण करके
शिव शंकर जी घूम रहे है
मैया! ऐसा है प्रभाव तुम्हारा
मस्ती में वह झूम रहे है
गंगे तुम हो निराकार
माया से हो अनजान
तुमको समझे कैसे कोई
मिला तुम्हें अमरत्व वरदान
तुम हो अमृतदायनी मैया
मेरी सारी बाधाएं हर लो
मुझको अमृत देकर मैया
निर्मल मन मेरा कर दो
गंगा की मधुर ध्वनि से
सभी पापमुक्त हो जाते है
जो श्रद्धा रखे भक्तिभाव से
भव से पार उतर जाते हैं..
रचनाकार- कुँवरानी मधु सिंह
हर हर गंगे...
ReplyDeletehar har gange
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