रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है
वक्त मांगे अब रिहाई मुझसे , भीतर कुछ सालता जाता है
चले थे जानिब दो कदम , क्यूँ रस्ता धुंधलाता जाता है
रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है
कलम नहीं देती साथ मेरा , हर्फ़ भी दामन छुड़ाता जाता है
अहसास का वो हर इक लम्हा , इक टीस बन तड़पता जाता है
रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है
बज्म-ए-सेहरा अब हस्ती मेरी , हर शक्स रुख बदलता जाता है
जिस्म ढोता है अब जिंदगी , रूह में नश्तर सा चुभता जाता है
रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है
आँखें पथरा गई इंतजार में , यूँ ही आज कल में बीतता जाता है
कब आओगे तुम ऐ जानिब , कि दिल अब डूबता जाता है
रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है
सुमन जी सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है.
ReplyDeleteइस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें...