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Wednesday, April 25, 2012

रात सिसकती है अब तन्हा , दिन अश्क बहाता जाता है















रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क  बहाता  जाता  है

वक्त मांगे  अब  रिहाई मुझसे , भीतर  कुछ  सालता  जाता है
चले  थे  जानिब  दो  कदम , क्यूँ  रस्ता धुंधलाता  जाता है

रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क  बहाता  जाता  है

कलम  नहीं  देती साथ  मेरा , हर्फ़ भी दामन छुड़ाता जाता है
अहसास का वो हर इक लम्हा , इक टीस बन तड़पता जाता है

रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क  बहाता  जाता  है

बज्म-ए-सेहरा अब हस्ती मेरी , हर  शक्स रुख बदलता जाता है
जिस्म  ढोता है अब  जिंदगी , रूह में नश्तर सा चुभता जाता है

रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क  बहाता  जाता  है


आँखें पथरा  गई इंतजार  में , यूँ ही आज कल में बीतता जाता है
कब  आओगे तुम ऐ जानिब  , कि दिल  अब  डूबता  जाता है

रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क   बहाता  जाता है
रात  सिसकती है  अब तन्हा , दिन  अश्क   बहाता  जाता है ...


सु ..मन 


ब्लॉग बावरा मन 

1 comment:

  1. सुमन जी सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है.
    इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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