आ रहा मधुमास लेकर प्यार की
परछाइयों को,
छोड़ पतझड़ की कहीं पर बेरुखी रुसवाइयों को |
रात की मनुहार करतीं अधखिली
कलियाँ सुमन की,
नेह की आभा बिखर कर बन गई खुशबू चमन की |
चाह इस आवागमन की पोसती
तरुणाइयों को....
अंजुरी मे भर खुशी को काल का
वंदन करेंगें,
भाव की रोली सजाकर अतिथि का
चंदन करेंगे |
कौन कब तक याद रखे विगत की रुसवाइयों को..
सीख लेकर पूर्वजों से आज का
जीवन सुधारें ,
गलतियों को भूल मन से चेतना
के तल बुहारें |
मातमी सरगम भुला कर साज दें
शहनाइयों को..
रचनाकार- डॉ. जय शंकर शुक्ला
संपर्क- बैंक कालोनी, दिल्ली।
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