राहुल 'शेष', दिल्ली
ज़ख्म सीने का सबसे छुपाता रहा !
नाकाम कोशिश रही वो
याद आता रहा !!
लौट आयेंगे वो यही
सोचा किये ,
सोचकर मैं यही उनको
बुलाता रहा !!
मेरे टूट जाने से वो
खुश हुए ,
इसलिए ही तो मैं टूट
जाता रहा !!
दर्द में भी सुकूँ
ढूंढ़ लेता हूँ मैं,
बस ख़ुशी के लिए चोट
खाता रहा !!
चलो 'शेष' अब तोड़ देते हैं हम,
कई जन्मों का था
जिनसे नाता रहा !!
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!