सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Sunday, February 17, 2013

शोभना ब्लॉग रत्न प्रविष्टि संख्या - 7

ग़ज़ल

इस मतलबी जहां के तलबगार हम नहीं 
दिल की सुनें सदा, करें व्यापार हम नहीं |

चाहा तुझे, पूजा तुझे , माना खुदा तुझे 
ये बात और है कि तेरा प्यार हम नहीं |

तू ऐतबार कर, जान पर खेल जाएंगे
वादा करें , निभाएं न , सरकार हम नहीं |

अपने उसूल छोड़ दें मंजूर कब हमें 
हर बात पर झुके जो, वो किरदार हम नहीं |

आजाद कर रहे तुझे कसमे-वफा से हम
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं |

है प्यार तो गुनाह यहाँ , रीत है यही
कैसे कहें कि विर्क गुनहगार हम नहीं |

रचनाकार: श्री दिलबाग विर्क

सिरसा, हरियाणा 

2 comments:

  1. सुन्दर अनुभूति प्रस्तुत करती रचना,दिलबाग जी बधाई!

    ReplyDelete

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!