व्यंग्य: सुरक्षा की गारंटी कैसे ले सरकार
आज दोपहर में जब मैं हजारीलाल के पास हजामत करवाने पहुंचा तो ऐसा लग रहा था मानो सर्दी ने भी दुष्कर्म की पीडि़ता के मामले पर अपने रौद्र रूप में उपस्थित होकर विरोध दर्ज करा दिया है। दुकान में घुसते ही मुझे ठिठकना पड़ा क्योंकि हजारीलाल बुक्का फाड़कर हंसने लगा। उसकी इस हरकत से दुकान में मौजूद सभी ग्राहक और कर्मचारी फैसला नहीं ले पा रहे थे कि वे मुझे देखें या हजारीलाल के हंसने को। बेकाबू होकर वे मुस्कराए, और हैरानी से उसे और मुझे बारी-बारी से देखते रहे कि उसे हंसने का भयंकर दौरा क्यों पड़ा है। मुझे अपने पर शक हुआ और जैकेट से नीचे देखने पर पैंट को यथास्थान पाया तो मुझे राहत मिली, फिर लगे हाथ पैंट के नीचे पहनी गर्म पजामी को भी चैक कर लिया और तिरछी निगाह से नीचे देखने पर दोनों जूतों जुराबों को भी एक रंग और डिजाइन का ही पाया। मैंने अपनी आखिरी तसल्ली मूंछों पर हाथ फेरकर कर ली, तब मेरी जान में जान आई। अब मैं आपको यह तो बतलाने से रहा कि मैंने अपनी पैंट की जिप भी चैक की थी जो कि कई बार खुली रहकर मेरी शर्मिंदगी का सबब बनी है। शुक्र है कि इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ था।
हजारीलाल बोला, मुन्नाभाई,आपने भी अखबार की हैडलाईनें पढ़ी होंगी कि ‘महिलाओं को सुरक्षा दे सरकारें’। फिर उस पर त्वरित टिप्पणी भी कर डाली कि जो सरकारें खुद ही सुरक्षित नहीं हैं और बीते दिनों उन्होंने महिलाओं पर पुलिस से डंडा चलवाकर अपनी सुरक्षा को मजबूत करने की कोशिश की है। वे महिलाओं को पिटवाएं या उन्हें सुरक्षा दिलवाने में अहम रोल अदा करें। मैंने हजारी लाल को चेताया कि तुम्हारा दिमाग फिर गया है, जानते नहीं हो कि यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है, जिसमें केन्द्र और राज्य सरकारों से इस बारे में चार सप्ताह में जवाब मांगा है और तुम हंसकर कोर्ट की तौहीन कर रहे हो, बुरे फंसोगे।
हजारीलाल ने कहा कि मेरी क्या मजाल कि मैं सुप्रीम कोर्ट की शान में गुस्ताखी करूं। मैं सरकारों के बेहूदा चाल-चलन के बारे में बतला रहा हूं क्योंकि उसे चलाने वाले दुष्कर्मी हैं। जो आधार कार्ड के बहाने गरीबों के खातों में सब्सिडी के नाम पर नकद ताकत जमा कर रहे हैं। मेरे खाते में भी 600 रुपए जमा मिले हैं ताकि मैं सीधे-सीधे अपने परिवार के पांच वोट उनके पक्ष में समर्पित कर दूं और उनकी सरकार की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए। सरकारें पब्लिक को मूर्ख समझ चरित्रहीन बनाने पर आमादा हैं।
जो खुद कुकर्मी हैं वे महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी क्यों देंगे। हजारीलाल की बात में दम है क्योंकि हज्जाम वह शौकिया नहीं, नौकरी न मिलने की मजबूरी से बना है। और इससे इस बात की भी पुष्टि होती है कि उसे अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की दाल-रोटी की चिंता है। वह सिर्फ अपने शौक पूरे करके अपने बच्चों को भूखा मारने के पक्ष में नहीं है। उसने पॉलिटिकल साईंस में ऑनर्स कर रखा है। उसने यह भी बताया कि यह संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं नहीं,एक वकील की याचिका पर सुनवाई के अनुरोध पर मंजूरी देते हुए लिया है, इसलिए इसमें सुप्रीम कोर्ट की अवमानना वाला मामला नहीं बनता है। फिर दिल्ली की सीएम इस मुद्दे पर ‘जनवरी’ माह में ‘पैदल मार्च’ कर रही हैं। जबकि काफी कड़े फैसले वे स्वयं लेने और लागू करवाने में सक्षम हैं। पर वे ऐसा करेंगी तो वोटों की खेती करने की अपनी जिम्मेदारी को कैसे पूरा करेंगी। आप तो जानते ही हैं मुन्नाभाई, यह मौसम वोटों की खेती के लिए कितना अनुकूल है। इस समय भरपूर फसल काटी जा सकती है। मानवाधिकार आयोग की नींद भी महिलाओं के सुरक्षा मसले पर उचट गई है परन्तु क्या गारंटी है कि वह दोबारा से गहरी नींद में नहीं सो जाएगा।
आज फिर मैं हजारीलाल के तर्क के आगे मैं बेबस था। ‘बस’ में सफर करने में वैसे भी खतरे बढ़ चुके हैं।
सरकार की अच्छी खासी हजामत कर दी
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