ये कैसा प्यार है जो अपने सबसे आत्मीय
व्यक्ति पर कुल्हाड़ी चलाने का दुस्साहस करने दे? या दुनिया
में सबसे प्रिय लगने वाले चेहरे को ही तेज़ाब से विकृत बना दे या फिर जरा सा
मनमुटाव होने पर गोली मारकर अपने प्रेमी की जान ले लेने की हिम्मत दे दे? यह प्यार हो ही नहीं सकता.यह तो प्यार के नाम पर छलावा है,दैहिक आकर्षण है या फिर मृग-मरीचिका है. प्यार तो सब-कुछ
देने का नाम है, सर्वत्र न्यौछावर कर देने और हँसते हँसते अपना सब कुछ लुटा देने का नाम है.प्यार
बलिदान है,अपने प्रेमी पर खुशी-खुशी कुर्बान हो
जाना है और खुद फ़ना होकर प्रेमी की झोली को खुशियों से भर देने का नाम है. यह कैसा
प्यार है जो साल दो साल साथ रहकर भी एक-दूसरे पर विश्वास नहीं जमने देता. प्यार तो
पहली मुलाक़ात में एक दूसरे को अपने रंग में रंग देता है और फिर कुछ पाने नहीं
बल्कि खोने और अपने प्रेमी पर तन-मन-धन लुटा देने की चाहत बढ़ जाती है.प्यार के रंग
में रंगे के बाद प्रेमी की खुशी से बढ़कर कुछ नहीं रह जाता.
मजनूं ने तो लैला पर कभी चाकू-छुरी
नहीं चलाई? न ही कभी तेज़ाब फेंका? उलटे जब मजनूं से जमाना रुसवा हुआ तो लैला ढाल बन गई,पत्थरों की बौछार अपने कोमल बदन पर सह गयी.तभी तो उनका नाम
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है.इसीतरह न ही कभी महिबाल को सोहिनी पर और न
ही हीर-राँझा को एक दूसरे पर कभी शक हुआ और न ही एक-दूसरे को मरने मारने की इच्छा
हुई. वे तो बस एक दूसरे पर मर मिटने को तैयार रहते थे.एक दूसरे की खुशी के लिए
अपना सुख त्यागने को तत्पर रहते थे. वे कभी एक दूसरे के साथ मुकाबले,प्रतिस्पर्धा,ईर्ष्या, द्वेष और
जलन में नहीं पड़े. यह भी उस दौर की बात है जब प्रेमी-प्रेमिका का मिलना-साथ रहना
तो दूर एक झलक पा जाना ही किस्मत की बात होती थी.तमाम बंदिशें,बाधाएं,रुकावटें,सामाजि क-सांस्कृतिक बेड़ियों के बाद भी वे एक दूसरे पर
कुर्बान हो जाते थे. मीरा ने कृष्ण के प्रेम में हँसते-हँसते जहर का प्याला पी
लिया था. प्रेमी का अर्थ ही है एक-दूसरे के हो जाना,एक-दूसरे में खो
जाना,एक-दूसरे पर जान देना और दो शरीर एक
जान बन जाना, न कि एक दूसरे की जान लेना. प्रेम होता
ही ऐसा है जिसमें अपने प्रियजन के सम्बन्ध में सवाल-जवाब की कोई गुंजाइश ही नहीं
होती. आज के आधुनिक दौर में जब युवाओं को एक–दूसरे के साथ दोस्ती बढ़ाने,घूमने-फिरने,साथ रहने और सारी सीमाओं से परे जाकर
एक- दूसरे के हो जाने की छूट हासिल है उसके बाद भी उनमें अविश्वास का यह हाल है कि
जरा सी नाराजगी जानलेवा बन जाती है, किसी और के साथ बात करते देख लेना ही
मरने-मारने का कारण बन जाता है. जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करने हैं उस पर
तेज़ाब फेंकने की अनुमति आपका दिल कैसे दे सकता है फिर आप चाहे उससे लाख नाराज हो.अब
तो लगता है कि ‘इंस्टेंट लव’ ने प्यार की गहराई को वासना में और अपने प्रेमी पर मर मिटने
की भावना को मरने-मारने के हिंसक रूप में तब्दील कर दिया है. शिक्षा के सबसे अव्वल
मंदिरों में ज्ञान के उच्चतम स्तर पर बैठे युवाओं का यह हाल है कि वे प्रेम के
ककहरे को भी नहीं समझ पा रहे और क्षणिक और दैहिक आकर्षण को प्यार समझकर अपना और
अपने साथी का जीवन बर्बाद कर रहे हैं. शायद यही कारण है कि इन दिनों समाज में
विवाह से ज्यादा तलाक़ और प्रेम से ज्यादा हिंसा बढ़ रही है.मनोवैज्ञानिकों और
समाजशास्त्रियों का मानना है कि समाज एवं परिवार से कटे आत्मकेंद्रित युवाओं में
किसी को पाने की इच्छा इतनी प्रबल हो गयी है कि वे इसके लिए बर्बाद होने या बर्बाद
करने से भी पीछे नहीं हटते. क्षणिक सुख की यह ज़िद समाज में नैतिक पतन का कारण बन
रही है और इससे प्रेम जैसा पवित्र,पावन और संसार का सबसे खूबसूरत रिश्ता
भी कलंकित हो रहा है.
संजीव शर्मा
संपादक, सैनिक समाचार,
नई दिल्ली
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