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Sunday, January 13, 2013

मेरा दूसरा कविता संग्रह’दोस्ती’-’यश पब्लिकेशंस’ से प्रकाशित




पुस्तक:     दोस्ती(कविता-संग्रह)
मूल्य:       195 रुपये
लेखक:     विनोद पाराशर
प्रकाशक:   यश पब्लिकेशंस
                  1/10753,गली नं.3,सुभाष पार्क,
                  नवीन शाहदरा,कीर्ति मंदिर के पास,
                  दिल्ली-110032 मो:09899938522
-मेल:      yashpublicationdelhi@gmail.com
वेबसाइड:   www.yashpublications.com
मित्रों!
लगभग 20 वर्ष बाद,मेरा दूसरा कविता-संग्रहदोस्तीप्रकाशित हुआ है.पुस्तक का प्रकाशन यश पब्लिकेशन्स,शाहदरा दिल्ली ने किया है.पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रताप सहगल ने लिखी है.साहित्यिक -पत्रिकासर्जनगाथाके संपादक श्री जयप्रकाशमानस विदेश में रहते हुए हिंदी ब्लागिंग का परचम लहराते श्री समीर लालसमीरजी ने भी इस पुस्तक पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पाणियाँ दी है.
फिलहाल उपर पुस्तक का आवरण पृष्ठ व नीचे श्री प्रताप सहगल द्वारा लिखी गयी पुस्तक की भूमिका आपके अवलोकन हेतु प्रस्तुत  है:-
भूमिका

लगभग 20 वर्षों के अंतराल के बाद विनोद पाराशर का नया कविता-संग्रह’दोस्ती’ सामने आ रहा है I जब किसी भी कवि के पहले और दूसरे कविता-संग्रह में इतना लंबा अंतराल हो, तो यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि कवि ने अपनी कविता-यात्रा में क्या विकास किया है?
     विनोद के पहले कविता-संग्रह ’नया-घर’ की कविताएँ-जीवन,रिश्तों और समाज के विभिन्न तबकों से जुड़ी हुई कविताएँ थीं I इस कविता-संग्रह में भी यात्रा के यही बिंदु परिलक्षित होते हैं,लेकिन कविताओं में व्यंग्य की मुद्रा पहले से अधिक धारदार हुई है I मसलन इसी कविता-संग्रह की कविता ‘कवि सप्लाई केन्द्र’ में तो साफ़ नज़र आता है कि इस कविता के बहाने विनोद ने समकालीन कविता में दुर्बोधता के प्रश्न पर व्यंग्य करते हुए-सम्प्रेषणीयता को महत्वपूर्ण माना है,लेकिन साथ ही कविता के नाम पर हो रही चुटकुलेबाजी को भी उन्होंने नहीं बख्शा है I
     इस कविता-संग्रह में ऐसी छोटी-छोटी कविताएँ भी हैं जो अपने छोटे कलेवर में भी गंभीर अर्थ देती हैं I मिसाल के तौर पर-‘दंगा:एक

‘जब भी-
दंगा होता है,
आदमी
लिबास में भी
नंगा होता है I ‘
इसी तरह से ताज़ा अखबार कविता को देखा जा सकता है I कविता है-
‘लूटपाट
भ्रष्टाचार
बलात्कार
बासी ख़बरें
ताज़ा अखबार
इस कविता में ऊपर आये हुए शब्द, तब तक अभिधावाची ही रहते हैं,जब-तक उसमेंबासी ख़बरे,ताज़ा अखबार’-शब्द नहीं जुड़ जाते I यही छोटी-छोटी दो पंक्तियाँ, कविता को आलौकित कर देती हैं और अभिधावाची शब्दों की ध्वन्यात्मकता समझ में आने लगती है. विनोद की इस तरह की कई कविताओं का मुहावरा बहुत सतही इकहरा लगता है,लेकिन अंत तक आते-आते,कविताओं के अर्थ बदल जाते हैं यह विनोद की कविताओं की शक्ति है I यही शक्ति,हमें,‘शरीफ़ आदमी’,‘एक साहित्यकार का रोज़नामचा’,‘वेतन आयोग’,और ‘जाँच-आयोग’-जैसी कविताओं में भी नज़र आती है I
विनोद ने अपने कुछ गीतों व गज़लों को भी इसी संग्रह में जोड़ दिया है I ग़ज़ल के मीटर की बात करें,तो भले ही वो मीटर पर पूरी नहीं उतरतीं, लेकिन भाव के स्तर पर कुछ कहती नज़र आती हैं I कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि व्यंग्य कविता में विनोद कहीं अधिक समर्थ नज़र आते हैं और संभवत: आने वाली कविताएँ भी उसी  ओर जाने का संकेत है I कामना करता हूँ कि वे और भी बेहतर लिखें और हिंदी कविता के संसार को और भी समृद्ध करें I

                                                          प्रताप सहगल
निवास
एफ-101
राजौरी गार्डन
नई दिल्ली-110027





2 comments:

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!