विकास की आंधी जाएगी किस ओर
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चित्र गूगल से साभार |
पता ठिकाना और न दिखता कहीं आखिरी छोर ।
यह विकास की आंधी जाने जाएगी किस ओर ।।
एक समय जब सडक किनारे वृक्ष लगाये जाते थे ।
सींचे जाते थे और पशुओं से सदा बचाए जाते थे ।।
खतरे में अस्तित्व उन्हीं का जो थे जीवन डोर ।
यह विकास ...........
पौधे से तरु बनने में भी कई साल लग जाते थे ।
तब जाकर पशु और आदमी शीतल छाया पाते थे ।।
जिन पर चिड़िया कलरव करती बैठा करते मोर ।
यह विकास .............
पथ के चौड़ी करण हेतु अब पादप काटे जाते हैं ।
शहरीकरण किये जाने हित जंगल छांटे जाते हैं ।।
तरुओं की आहों से आएँगी विपदाएं घोर ।
यह विकास .............
वन उपवन के कम होने से आज प्रकृति बौराई है ।
खग पशुओं का जीवन भी खतरे में दिखता भाई है ।।
चारों तरफ सुनाई देता त्राहिमाम का शोर ।
यह विकास .....
सूखा और प्रदूषण जैसी विपदा से यदि बचना है ।
छेड़ छाड़ उससे मत करिए जो कुदरत की रचना है ।।
तभी रत के बाद मिलेगी पुनः सुहानी भोर ।
यह विकास .............
रचनाकार- श्री अशोक पाण्डेय "अनहद "
संपर्क- कृष्ण विहार ,कुल्ली खेरा मार्ग
अर्जुन गंज लखनऊ (उ. प्र.)
मो . 9415173092
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सुमित प्रताप सिंह,
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