चित्र गूगल से साभार |
छत पर लेटे
अक्सर चंदा
देखता हूँ
मैं तुझे,
घोर अंधकार से
तारों के साथ मैं
जूझता पाता हूँ
मैं तुझे.
तेरा स्वरुप
हर रात
घटता हुआ
पाता हूँ मैं
और एक दिन
सिर्फ अंधकार से
तुझको घिरा
पाता हूँ मैं
तब आभास
होता है
चंदा तेरी
लाचारी का
लेकिन
धीरे-धीरे
नित्य
जब बढ़ता है
तेरा स्वरुप
तो वही अंधकार
मेरे छत के
कोने मैं
छिपकर बैठ जाता है
और ख़ुशी से
देखता
जाता हूँ
मैं तुझे.
उत्साह बढाने के लिए हार्दिक आभार कैलाश शर्मा जी...
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