सुन रे जेबकतरे
तूने उस आदमी की जेब काटी
पर तूने उस आदमी की जेब नहीं
हृदय काटकर निकाल लिया है
उसके जिस्म में से
जो अब तक धड़क रहा था
खुशी से अनेक अरमान लिए
जो रुपए तूने उसके चुराए
वो बचाते उसकी पगड़ी को
उस ठोकर से
जो लगेगी उसकी लड़की के
होनेवाले ससुर की लात से
वो रुपए बचा लेते
उसकी लड़की को
ससुराल में होनेवाले अत्याचार से
शायद वह बच पाती
जिंदा जलाये जाने से
लेकिन तूने उनकी सारी
आशाओं को कतर डाला
अपने पैने ब्लेड से
अब वह इंसान जिसको तूने
जीते जी मार डाला
शायद लटका ले
अपने मुर्दा जिस्म को
घर के कमरे में चुपचाप
रस्सी के फंदे में
अपनी गर्दन फँसा और
उसका परिवार भी करे
उसका ही अनुसरण
पर सुन ओ पापी
ईश्वर करे तू भी न बचे
इस पाप के परिणाम से
तेरे शरीर में
छोटे – छोटे कीड़े उपजें और
तेरे शरीर को धीमे धीमे
वैसे ही कतरें
जैसे कतरता है तू जेबें सबकी
तड़प तड़प कर तू भी
वैसे ही मरे
जैसे मार डाला तूने
कइयों को बेमौत ही।
चित्र गूगल बाबा की जेब से साभार |
यह जेब कट गयी तो लिख डाला |महंगाई के कारण निर्धन भूखे मर रही हैं उनका पेट +जेब कौन काट रहा है
ReplyDeleteगुड्डो दादी प्रणाम! इस कविता को उन बड़े जेबकतरो को सुनाने का जिम्मा आपका... :)
Deletesunder vishaye ko lekar likhi dill ko choo lene wali gehra bhaw liye behad umda rachna.sunder likhne ke liye rachna kar ko badhai.
ReplyDeleteशुक्रिया अमर जी...
Deleteअति-उत्तम...जेब कटने की घटनाओं को प्राय लोग गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन आपकी ये कविता जो भी सुनेगा (या पढे़गा)वो जरुर इस विषय पर गौर करेगा कि कहीं पीड़ित व्यक्ति इन वर्णित किरदारों में से तो नहीं है...
ReplyDeleteजी नीरज जी शुक्रिया...
Delete