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Saturday, April 28, 2012

गीत गौरव

      मौन से व्याकुल धरा  पर गीत लेकर आ गए हम .
      भावना संवेदना और प्रीत  लेकर  आ गए हम    .
        पर्वतों  से धैर्य  माँगा  और नदी से राह चलना .
        बादलों से जल लताओं  से लिया गिर कर सम्हलना .
        कूकती कोयल से पाया मृदु  स्वरों में बात कहना .
        सौम्य सुमनों से लिया है मुस्कुरा कर पीर सहना .
    लो सुहानी शांति का संगीत लेकर आ गए हम .
    मौन से व्याकुल ...............
         हम कला और संस्कृति की चेतना का आचरण  हैं .
         प्रेम की हम वर्णमाला लोकनिधि का व्याकरण  हैं .
        शौर्य का उद्घोष  हैं हम शब्द के करता अमर हैं . 
         छाँव की काली सतह पर धूप के हस्ताक्षर  हैं .
    इस तामस पर रौशनी की जीत लेकर  आ गए हम .
     मौन से व्याकुल .................
          राह भटके  आदमी  को हम दिखाते हैं दिशाएँ .
          पूर्वजों की दी हुई थाती  समय  की वर्जनाएं .
          हम दुराचारी जनों  को प्रेम के परिमाण  देते .
           सीप बन मोती  बनाते बूँद को नव ज्ञान  देते .
     आज मधु ऋतु  में नया अभिनीत  लेकर आ गए हम .
      मौन से व्याकुल ..................
           चांदनी के श्वेत पंखों  पर सजे सपने हमारे .
           व्योम की तारावली  तक घूमते  हैं शब्द  न्यारे .
            इस धरा की सौम्य परिभाषा  हमारा संकलन  है .
           राजसी वैभव लिए हैं और कहीं वल्कल  बसन  हैं .
     हिमशिखर  से देवसरि सुपुनीत  लेकर आ गए हम .
        मौन से व्याकुल .................
           गीत जन गन के तिमिर मन में उजाले की किरण हैं .
           भाव की भागीरथी  के प्रस्फुटित  पीयूष कण हैं .
           शब्द के मोती भरे महिमामयी  मंगल कलश हैं .
           सत्य के हित चिंतकों का शांतिमय प्रेरक सुयश हैं .
    कल्पना  निधि का मधुर  नवनीत लेकर आ गए हम .
      मौन  से व्याकुल ..................
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                                       डॉ. कृष्ण  कान्त मधुर-  ०९९९९०४३४५५
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2 comments:

  1. मधुर जी गीत अच्छा है...

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  2. वाह बहुत खूब ............... बधाई मधुर जी .

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!