मौन से व्याकुल धरा पर गीत लेकर आ गए हम .
भावना संवेदना और प्रीत लेकर आ गए हम .
पर्वतों से धैर्य माँगा और नदी से राह चलना .
बादलों से जल लताओं से लिया गिर कर सम्हलना .
कूकती कोयल से पाया मृदु स्वरों में बात कहना .
सौम्य सुमनों से लिया है मुस्कुरा कर पीर सहना .
लो सुहानी शांति का संगीत लेकर आ गए हम .
मौन से व्याकुल ...............
हम कला और संस्कृति की चेतना का आचरण हैं .
प्रेम की हम वर्णमाला लोकनिधि का व्याकरण हैं .
शौर्य का उद्घोष हैं हम शब्द के करता अमर हैं .
छाँव की काली सतह पर धूप के हस्ताक्षर हैं .
इस तामस पर रौशनी की जीत लेकर आ गए हम .
मौन से व्याकुल .................
राह भटके आदमी को हम दिखाते हैं दिशाएँ .
पूर्वजों की दी हुई थाती समय की वर्जनाएं .
हम दुराचारी जनों को प्रेम के परिमाण देते .
सीप बन मोती बनाते बूँद को नव ज्ञान देते .
आज मधु ऋतु में नया अभिनीत लेकर आ गए हम .
मौन से व्याकुल ..................
चांदनी के श्वेत पंखों पर सजे सपने हमारे .
व्योम की तारावली तक घूमते हैं शब्द न्यारे .
इस धरा की सौम्य परिभाषा हमारा संकलन है .
राजसी वैभव लिए हैं और कहीं वल्कल बसन हैं .
हिमशिखर से देवसरि सुपुनीत लेकर आ गए हम .
मौन से व्याकुल .................
गीत जन गन के तिमिर मन में उजाले की किरण हैं .
भाव की भागीरथी के प्रस्फुटित पीयूष कण हैं .
शब्द के मोती भरे महिमामयी मंगल कलश हैं .
सत्य के हित चिंतकों का शांतिमय प्रेरक सुयश हैं .
कल्पना निधि का मधुर नवनीत लेकर आ गए हम .
मौन से व्याकुल ..................
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डॉ. कृष्ण कान्त मधुर- ०९९९९०४३४५५
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मधुर जी गीत अच्छा है...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ............... बधाई मधुर जी .
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